35. शास्त्रसार समुच्चय:
शास्त्रसार समुच्चय (श्रीमाघनन्दियोगीन्द्र-विरचित:) श्रीमन्नम्रामरस्तोमं प्राप्तानन्तचतुष्टयम्। नत्वा जिनाधिपं वक्ष्ये शास्त्रसारसमुच्चयम्।।१।। सूत्रद्वयं कर्णाटवृत्तावेव।। अथ त्रिविध: कालो द्विविध: षड्विधो वा।।१।। दशविधा: कल्पद्रुमा:।।२।। चतुर्दश कुलज्र्रा इति।।३।। षोडशभावना:।।४।। चतुर्विंशतितीर्थंकरा:।।५।। चतुिंस्त्रशदतिशया:।।६।। पंच महाकल्याणानि।।७।। घातिचतुष्टयम्।।८।। अष्टादश दोषा:।।९।। समवसरणैकादशभूमय:।।१०।। द्वादशगणा:।।११।। अष्टमहाप्रातिहार्याणि।।१२।। अनन्तचतुष्टयमिति।।१३।। द्वादशचक्रवर्तिन:।।१४।। सप्ताङ्गानि।।१५।। चतुर्दशरत्नानि।।१६।। नवनिधय:।।१७।। दशाङ्गभोगा इति।।१८।। नवबलदेववासुदेवनारदाश्चेति।।१९।। एकादशरुद्रा:।।२०।। ।।इति शास्त्रसारसमुच्चये प्रथमोऽध्याय:।।१।। अथ त्रिविधो लोक:।।१।। सप्तनरका:।।२।। एकोनपंचाशत्पटलानि।।३।। इन्द्रकाणि च।।४।। चतुरुत्तर-षट्च्छतनवसहस्रं श्रेणिबद्धानि।।५।। सप्तचत्वारिंशदुत्तरत्रिंशताधिकनवतिसहस्रालं-कृतत्र्यशीतिलक्षं…