ऐरावत हाथी का वर्णन अभियोगाणं अहिवइदेवो चेट्ठेदि दक्खिणिंदेसुं। बालकणामो उत्तरइंदेसुं पुप्फदंतो य।।२७७।। सक्कदुगम्मि य वाहणदेवा एरावदणाम हत्थि कुव्वंंति। विक्किरियाओ लक्खं उच्छेहं जोयणा दीहं।।२७८।। १०००००। एदाणं बत्तीसं होंति मुहा दिव्वरयणदामजुदा। पुह पुह रुणंति किंकिणिकोलाहलसद्दकयसोहा।।२७९ एक्केक्कमुहे चंचलचंदुज्जलचमरचारूवम्मि। चत्तारि होंति दंता धवला वररयणभरखचिदा।।२८०।। एक्केक्कम्मि विसाणे एक्केक्कसरोवरो विमलवारी। एक्केक्कसरवरम्मि य एक्केक्वं कमलवणसंडा।।२८१।। एक्केक्ककमलसंडे बत्तीस विकस्सरा महापउमा। एक्केक्कमहापउमं एक्केक्कजोयणं पमाणेणं।।२८२।।…
आकाश में विजय देव के नगर में जिनमंदिर हैं। विजयादिदुवाराणं पंचसया जोयणाणि वित्थारो। पत्तेक्वं उच्छेहो सत्त सयािंण च पण्णासा।।७३।। जो ५००। ७५०। दारोवरिमपुराणं रुंदा दो जोयणाणि पत्तेक्वं। उच्छेहो चत्तािंर केई एवं परूवंति।।७४।। २। ४। ठान्तरम्। एदेिंस दाराणं अहिवइदेवा हुवंति विंतरया। जंणामा ते दारा तंणामा ते वि रक्खादो।।७५।। एक्कपलिदोवमाऊ दसदंडसमाणतुंगवरदेहा। दिब्वामलमउडधरा सहिदा देवीसहस्सेिंह।।७६।। दारस्स उवरिदेसे विजयस्स…
द्रौपदी का स्वयंवर हुआ है न कि भिक्षा में प्राप्त हुई रूपलावण्यसौभाग्यकलालंकृतविग्रहा। द्रौपदी तनया तस्य द्रुपदस्योपमोज्झिता।।१२२।। तस्याःकृते कृताः सर्वे मनोजेन नृपात्मजाः। सग्रहा इव याचन्ते नानोपायनपाणयः।।१२३।। दाक्षिण्यभङ्गभीतेन द्रुपदेन ततो नृपाः। विश्वे चन्द्रकवेधार्थमाहूताः कन्यर्कािथनः।।१२४।। द्रौपदीग्रहवश्यानां काश्यप्यामिह भूभृताम्। कर्णदुर्योधनादीनां माकन्द्यां निवहोऽभवत्।।१२५।। सुरेन्द्रवर्धनः खेन्द्रः स्वसुतावरमार्गणैः। धनुर्गाण्डीवमादेशाद्दिव्यं तत्र तदाऽकरोत्।।१२६।। चण्डगाण्डीवकोदण्डमण्डलीकरणक्षमः। राधावेधसमर्थो यो द्रौपद्या: भवेत्पति:।।१२७।। इतीमां घोषणां श्रुत्वा द्रोणकर्गादयो नृपाः। समेत्य…
णमोकार महामंत्र णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व साहूणं।।१।। इस महामंत्र में पांच पद हैं और पैंतीस अक्षर हैं। णमो अरिहंताणं ७ अक्षर, णमो सिद्धाणं ५, णमो आइरियाणं ७, णमो उवज्झायाणं ७, णमो लोए सव्वसाहूणं ९ अक्षर, इस प्रकार इस मंत्र में कुल ३५ अक्षर हैं। अर्थ — लोक में…
देवों के यान-विमान,वस्त्राभरण नित्य व अनित्य भी हैं। वालुगपुप्फगणामा याणविमाणाणि सक्कजुगलम्मि। सोमणसं सिरिरुक्खं सणक्कुमारिंददुदयम्मि।।४३८।। बिंम्हदादिचउक्के याणविमाणाणि सव्वदो भद्दा। पीदिकरम्मकणामा मणोहरा होंति चत्तारि।।४३९।। आणदपाणदइंदे लच्छीमादिंतिणामदो होदि। आरणकप्पिंददुगे याणविमाणं विमलणामं।।४४०।। सोहम्मादिचउक्के कमसो अवसेसकप्पजुगलेसुं। होंति हु पुव्वुत्ताइं याणविमाणाणि पत्तेक्वं।।४४१।। पाठान्तरम्। एककं जोयणलक्खं पत्तेक्वं दीहवाससंजुत्ता। याणविमाणा दुविहा विक्किरियाए सहावेणं।।४४२।। ते वक्किरियाजादा याणविमाणा विणासिणो होंति। अविणासिणो य णिच्चं सहावजादा परमरम्मा।।४४३।।…
२४ तीर्थंकरों के प्रथम आहार दाता के नाम स श्रेयान् ब्रह्मदत्तश्च सुरेन्द्र इव संपदा। राजा सुरेन्द्रदत्तोऽन्य इन्द्रदत्तश्च पद्मकः।।२४५।। सोमदत्तो महादत्तःसोमदेवस्य पुष्पकः। पुनर्वसुःसुनन्दश्च जयश्चापि विशाखकः।।२४६।। धर्मसिंहः सुमित्रश्च धर्ममित्रोऽपराजितः। नन्दिषेणश्च वृषभदत्तो दत्तश्च सन्नयः।।२४७।। वरदत्तश्च नृपतिर्धन्यश्च वकुलस्तथा। पारणासु जिनेन्द्रेभ्यो दायकाश्च त्वमी स्मृताः।।२४८।।’ १. राजा श्रेयांस, २. ब्रह्मदत्त, ३. सम्पत्ति के द्वारा सुरेन्द्र की समानता करने वाला राजा सुरेन्द्रदत्त,…
भागीरथ महामुनि के पाद प्रक्षाल के क्षीरोदधि के जल से गंगानदी भागीरथी कहलाई है और तीर्थपने को प्राप्त हो गई है। भागीरथोऽपि तान् गत्वा कृत्वा भक्त्या नमस्क्रियाम्। धर्ममाकण्र्य जैनेन्द्रमादत्त श्रावकव्रतम्।।१३३।। प्रकटीकृततन्मायो मणिकेतुश्च तान् मुनीन्। क्षन्तव्यमित्युवाचैतान सगरादीन् सुहृद्वरः।।१३४।। कोऽपराधस्तवेदं नस्त्वया प्रियमनुष्ठितम्। हितं चेति प्रसन्नोक्त्या ते तदा तमसान्त्वयन्।।१३५।। सोऽपि सन्तुष्य सिद्धार्थो देवो दिवमुपागमत्। परार्थसाधनं प्रायो ज्यायसां परितुष्टये।।१३६।।…
२४ तीर्थंकरों के प्रथम पारणा के नगर श्री हस्तिनापुरं रम्यमयोध्या नगरी शुभा। श्रावस्ती च विनीता च पुरं विजयपूर्वकम्।।२३९।। पुरं मङ्गलकं नाम्ना पाटलीखण्डसंज्ञकम्। पद्मखण्डपुरं कान्तं तथा श्वेतपुरं परम्।।२४०।। अरिष्टपुरमिष्टं तु सिद्धार्थपुरमप्यतः। महापुरमतो नाम्ना स्पुटं धान्यवटं पुरम्।।२४१।। वर्धमानपुरं ख्यातं पुरं सौमनसाह्वयम्। मन्दरं हास्तिनपुरं तथा चक्रपुरं मतम् ।।२४२।। मिथिला राजगृहकं पुरं वीरपुरं तथा। पुरी द्वारवती काम्यकृतं कुण्डपुरं पुरम्।।२४३।।…
धाराशिव नगर में १००८ खम्भों का जिनमंदिर आराधना कथाकोष संस्कृत में करकण्डु राजा की कथा में १००८ खम्भों वाले जिनमंदिर का वर्णन आया है— मार्गे तेरपुराभ्यर्णे संस्थितः सैन्यसंयुतः। तदागत्य च भिल्लाभ्यां तं प्रणम्य प्रजल्पितम्।।१४३।। अस्मात्तेरपुरादस्ति दक्षिणस्यां दिशि प्रभो। गव्यूतिकान्तरे चारु पर्वतस्योपरिस्थितम्।।१४४।। धाराशिवपुरं चास्ति सहस्रस्तंभसंभवम्। श्रीमज्जिनेन्द्रदेवस्य भवनं सुमनोहरम्।।१४५।। तस्योपरि तथा शैल-मस्तके संप्रवत्र्तते। वल्मीकं तच्च सद्धस्ती शुभो…