01. प्रकृति प्रकरण
प्रकृति प्रकरण “मंगलाचरण” पणमिय सिरसा णेमिं गुणरयणविभूसणं महावीरं। सम्मत्तरयणणिलयं पयडिसमुक्कित्तणं वोच्छं।।१।। प्रणम्य शिरसा नेमिं गुणरत्नविभूषणं महावीरम्। सम्यक् त्वरत्ननिलयं प्रकृतिसमुत्कीर्तंनं वक्ष्यामि।।१।। अर्थ—मैं नेमिचंद्र आचार्य, ज्ञानादिगुणरूपी रत्नों के आभूषणों को धारण करने वाले, मोक्षरूपी महालक्ष्मी को देने वाले, सम्यक्त्वरूपी रत्न के स्थान ऐसे श्रीनेमिनाथ तीर्थंकर को मस्तक नवा-प्रणाम कर, ज्ञानावरणादि कर्मों की मूल व उत्तर दोनों प्रकृतियों…