सामायिक का शास्त्रोक्त समय (ज्ञानमती माताजी की आत्मकथा- मेरी स्मृतियाँ से) सुजानगढ़ चातुर्मास- सुजानगढ़ चातुर्मास में सन् १९६० में अच्छी धर्मप्रभावना हो रही थी। यहाँ चौके पूरे शहर में लगते थे। यहाँ मैं सामायिक के लिए प्रातः नशिया चली जाती थी। सामायिक का समय- एक दिन एक आर्यिका ने यह प्रश्न किया कि- ‘‘सामायिक तो...
2 सितम्बर 2017 प्रवचन त्याग घर का जो करते हो, तभी तो चीजें मिलती हैं। धरी वस्तुएँ चीजें तो त्याग करने से मिलती है। सन् १९६५ की बात है, अमेरिका से भारत अन्न आता था देशवासियों के लिए। सभी देशविायों के लिए कहना है, आप लोग बुरी चीजें त्याग करें अच्छी-अच्छी चीजें ग्रहण करें। उत्तम...
आर्यिका चर्या आधुनिक परिवेश में चाहे श्रावक हो या मुनि, श्राविका हो या आर्यिका, स्पष्ट रूप में उनकी चर्या का ज्ञान होना आवश्यक है। आचार्यश्री यतिवृषभ स्वामी ने कहा है- पंचमकाल के अंत तक मुनि-आर्यिका, श्रावक-श्राविका का चतुर्विध संघ वर्तन करेगा। अभी तो पंचमकाल के मात्र २५४० वर्ष व्यतीत हुए हैं, शेष १८४०० वर्षों तक...
यथायोग्य शिक्षा के विधाता आचार्य शिरोमणि श्री वीरसागर जी महाराज स्वात्मैकनिष्ठं नृसुरादिपूज्यं, षड्जीवकायेषु दयाद्र्रचित्तम्।श्रीवीरसिन्धुँ भवार्धिपोतमाचार्यवर्यं त्रिविधं नमामि।। आचार्य श्री वीरसागर जी महाराज का शिष्यों के प्रति वात्सल्य भाव असीम था। सन् १९५७ में आचार्यश्री अपने विशाल संघ सहित जयपुर शहर में खजांची की नशिया में विराज रहे थे। एक बार यह निर्णय हुआ कि...
सरस्वती की भण्डार जगत्माता ज्ञानमती जी इतिहास गवाह है कि जब-जब इस पृथ्वी पर अत्याचार, अनाचार, दुराचार, शोषण, हिंसा, विद्वेष, अधर्म तथा कुरीतियों का बोल-बोला हुआ, तब-तब दिव्य आत्माओं ने इस धरती पर अवतार लेकर समाज में व्याप्त समस्त बुराईयों को दूर करने का बीड़ा उठाया और पीड़ित मानव की सेवा कर उन्हें धर्म...
बनारस से पूर्व ब्राह्मण विद्वान से चर्चा (ज्ञानमती माताजी की आत्मकथा) बनारस पहुँचने से २-३ दिन पूर्व हम लोग एक गाँव से बाहर स्कूल में ठहरे हुए थे। प्रातः बाहर एक चबूतरे पर बैठकर मैं हाथ में ‘प्रथमगुच्छक’ पुस्तक लेकर पढ़ रही थी। उसमें ‘समयसार कलश’ श्लोक छपे हुए हैं। उन्हीं कलश काव्यों का...
शाश्वत तीर्थ अयोध्या में प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव महामस्तकाभिषेक दक्षिण भारत में श्रवणबेलगोला के भगवान बाहुबली महामस्तकाभिषेक की परम्परा तो एक हजार वर्षों से चली आ रही है किन्तु उत्तर भारत में महामस्तकाभिषेक की परम्परा प्राय: नहीं देखी जाती थी। अत: पूज्य माताजी की प्रेरणा से शाश्वत तीर्थ अयोध्या में विराजमान ३१ फुट उत्तुंग प्रथम...
शास्त्रोक्त आर्यिका चर्या एवं गणिनी श्री ज्ञानमती माताजी इस कर्मयुग के प्रारंभ में जिस प्रकार से तीर्थंकर आदिनाथ ने दीक्षा लेकर मुनि परम्परा को प्रारंभ किया, उसी प्रकार उनकी पुत्री ब्राह्मी-सुन्दरी ने दीक्षा लेकर आर्यिका परम्परा का शुभारंभ किया है। किंवदन्ती में ऐसा लोग कह देते हैं कि भगवान् आदिनाथ को अपने दामाद के...
गिरनार के मार्ग में धर्म प्रभावना (ज्ञानमती माताजी की आत्मकथा) मार्ग में धर्म प्रभावना- इसके बाद यहाँ संघ दो-तीन दिन ठहरा पुनः गुजरात की ओर मंगलविहार हो गया। संघ में आर्यिका सुमतिमती माताजी वृद्ध थीं तथा आर्यिका पार्श्वमती जी (जयपुर वाली) कुछ अस्वस्थ रहती थीं अतः आचार्यश्री की आज्ञा से एक डोली का प्रबंध किया...