देववन्दना प्रयोग विधि
देववन्दना प्रयोग विधि त्रिसन्ध्यं वन्दने युञ्ज्याश्चैत्यपंचगुरुस्तुती। प्रियभत्तिं बृहद्भक्तिष्वन्ते दोषविशुद्धये ।।१।। तथा- जिणदेववन्दणाए चेदियभत्ती य पञ्चगुरुभत्ती ।।१/२।। ऊनाधिक्यविशुद्ध्यर्थं सर्वत्र प्रियभक्तिका ।।१/२।। तीनों सन्ध्या सम्बन्धी जिनवन्दना में चैत्यभक्ति और पञ्चगुरुभक्ति तथा सभी बृहद्भक्तियों के अन्त में वन्दनापाठ की हीनाधिकता रूप दोषों की विशुद्धि के लिये प्रियभक्ति-समाधिभक्ति करना चाहिये । इस देववन्दना में छह प्रकार का कृतिकर्म भी…