वन्दना के ३२ दोष
वन्दना के ३२ दोष वन्दना के ३२ दोष किदियम्मंपि करंतो ण होदि किदयम्मणिज्जराभागी। बत्तीसाणण्णदरं साहू ठाणं विराहंतो।।६१०।। गाथार्थ – इन बत्तीस स्थानों में से एक भी स्थान की विराधना करता हुआ साधु कृतिकर्म को करते हुए भी कृतिकर्म से होने वाली निर्जरा को प्राप्त नहीं होता है।।६१०।। वन्दना के ३२ दोष हैं। इन दोषों से…