षट्खण्डागम पुस्तक-१ (सिद्धान्तचिंतामणि टीका) से संग्रहीत गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माताजी णमोकार महामंत्रणमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।१।। १ – महामंत्र में अरिहन्त भगवान को प्रथम नमस्कार क्यों किया ? ‘‘विगताशेषलेपेषु सिद्धेषु सत्स्वर्हतां सलेपानामादौ किमिति नमस्कार: क्रियते इति चेन्नैष दोष:, गुणाधिकसिद्धेषु श्रद्धाधिक्यनिबंधनत्वात् असत्यर्हति आप्तागमपदार्थावगमो न भवेदस्मदादीनां संजातश्चैतत्प्रसादादित्युपकारापेक्षया वादावर्हन्नमस्क्रियते। न पक्षपातो दोषाय,…
षट्खण्डागम पुस्तक-५ (सिद्धान्तचिंतामणि टीका) से संग्रहीत -गणिनी ज्ञानमती मंगलाचरणं सिद्धा: सिद्ध्यन्ति सेत्स्यन्ति, त्रैकाल्ये ये नरोत्तमा:। सर्वार्थसिद्धिदातार:, ते मे कुर्वन्तु मंगलम्।।१।। श्लोकार्थ – जो महापुरुष तीनों कालों में-भूतकाल में सिद्ध हो चुके हैं, वर्तमान में सिद्ध हो रहे हैं और भविष्य में सिद्धपद को प्राप्त करेंगे, वे सर्वार्थसिद्धि को प्रदान करने वाले-सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि करने…
षट्खण्डागम पुस्तक-३ (सिद्धान्तचिंतामणि टीका) से संग्रहीत -गणिनी प्रमुख ज्ञानमती माताजी मंगलाचरणम् अनन्तानन्तमाना ये, सिद्धास्तेभ्यो नमो नम:। द्रव्यप्रमाणज्ञानार्थ-मेतं ग्रन्थमपि स्तुम:।।१।। श्लोकार्थ-अनंतानंत प्रमाण जो सिद्ध भगवान हैं उनको मेरा बारम्बार नमस्कार होवे। अपने संख्याज्ञान-द्रव्यप्रमाणानुगम ज्ञान की वृद्धि के लिए इस ग्रंथ की भी हम स्तुति करते हैं। १ – संयत मुनियों की उत्कृष्ट संख्या इस प्रकार प्रमत्तसंयत…
सिद्धान्त नवनीत षट्खण्डागम पुस्तक-४(सिद्धान्तचिंतामणि टीका) से संग्रहीत -गणिनी प्रमुख श्रीमती ज्ञानमती माताजी मंगलाचरण शुक्लध्यानाग्निा दग्ध्वा, कर्मेन्धनानि संयताः। सिद्धिं प्रापुर्नमस्तेभ्यः, शुक्लध्यानस्य सिद्धये।।१।। श्लोकार्थ – शुक्लध्यान की अग्नि के द्वारा जिन संयतों ने कर्मरूपी ईंधन को जलाकर भस्म कर दिया है, उन सभी संयतों को शुक्लध्यान की सिाqद्ध के लिए मेरा नमस्कार है ।।१।। (१) महामत्स्य के…
षट्खण्डागम पुस्तक-२ (सिद्धान्तचिंतामणि टीका) से संग्रहीत -गणिनी प्रमुख श्रीमती ज्ञानमती माताजी मंगलाचरणम्सिद्धिकन्याविवाहार्थं, त्यक्त्वा राजीमतीं सतीम्। दीक्षां लेभे महायोगिन्! नेमिनाथ! नमोऽस्तु ते।।१।। श्लोकार्थ- सिद्धि कन्या से विवाह करने हेतु जिन्होंने सती राजमती का त्याग करके जैनेश्वरी-मुनिदीक्षा धारण की थी ऐसे हे महायोगिराज! नेमिनाथ भगवन्! आपको मेरा नमस्कार होवे।।१।। १ – सम्यग्दृष्टि देव के मरण समय संक्लेश…
षट्खण्डागम पुस्तक-६ (सिद्धान्तचिंतामणि टीका) से संग्रहीत -गणिनी प्रमुख श्रीमती ज्ञानमती माताजी मंगलाचरणम् सिद्धान् भूम्यष्टमीप्राप्तान्, अष्टगुणसमन्वितान्। अष्टाङ्गेन नुमो नित्य-मष्टकर्मविमुक्तये।।१।। श्लोकार्थ- जो आठ गुणों से सहित हैं, आठवीं-ईषत्प्राग्भारा नाम की पृथ्वी को प्राप्त हो चुके हैं ऐसे सिद्ध भगवन्तों को हम आठों कर्मों से छूटने के लिये नित्य ही अष्टांग नमस्कार करते हैं। (१) सूत्रों के ज्ञान…
षट्खण्डागम-सिद्धान्तचिंतामणि टीका एक दिव्य उपहार प्रस्तुति-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती चिन्तामणि रत्न के समान फलदायी सिद्धान्त-चिंतामणिटीका भव्यात्माओं! जैसे चिन्तामणि रत्न के बारे में सुना जाता है कि वह चिंतित फल को प्रदान करने वाला होता है, जिसे प्राप्त करके मानव भौतिक सुख-संपत्तिवान् बन जाता है। उसी प्रकार से जिन सिद्धान्त ग्रंथों का अध्ययन करके स्वाध्यायी जन मनवांछित…
षट्खण्डागम पुस्तक-१ मंगलाचरण (गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती विरचित) सिद्धान् सिद्ध्यर्थमानम्य, सर्वांस्रैलोक्यमूर्ध्वगान्। इष्ट: सर्वक्रियान्तेऽसौ, शान्तीशो हृदि धार्यते।।१।। अर्थ – त्रैलोक्य शिखर-सिद्धशिला पर विराजमान अनन्त सिद्धपरमेष्ठियों को नमस्कार करके जो समस्त क्रियाओं के अन्त में इष्ट-विशेषरूप से मान्य-स्वीकार किए गये हैं ऐसे श्री शांतिनाथ भगवान को मैं अपने हृदय में धारण (विराजमान) करता हूँ।।१।। त्रैकालिकार्हतोऽनन्तां-श्चतुर्विंशतितीर्थपान्। सीमन्धरादितीर्थेशान्, नुम: सर्वार्थसिद्धये।।२।।…