चारित्र एवं नैतिकता
चारित्र एवं नैतिकता-जैनदर्शन की दृष्टि में ‘‘चारित्तं खलु धम्मो’’ यह वाक्य श्री कुंदकुंददेव का है। उन्होंने धर्म को ही चारित्र कहा है। व्याकरण की निरुक्ति के अनुसार ‘‘यच्चरति तच्चारित्रं’’ जो आचरण किया जाय वह चारित्र है और धर्म की व्युत्पत्ति में ‘‘उत्तमे सुखे य: धरति स: धर्म:’’ जो उत्तम सुख में पहुंचाता है वह धर्म…