10. वैयावृत्यकरण भावना
वैयावृत्यकरण भावना गुणवद्दु:खोपनिपाते निरवद्येन विधिना तदपहरणं वैयावृत्यम्।।९।। गुणवान साधुओं के ऊपर किसी प्रकार के दु:ख आ जाने पर या व्याधि आदि से पीड़ित होने पर निर्दोष औषधि के द्वारा उसको दूर करना यह बहु उपकार को करने वाला वैयावृत्यकरण है। श्री उमास्वामी आचार्य भी कहते हैं-‘आचार्य, उपाध्याय, तपस्वी, शैक्ष, ग्लान, गण, कुल, संघ, साधु और…