11. अरिहंतभक्ति भावना
अरिहंतभक्ति भावना अर्हदाचार्येषु बहुश्रुतेषु प्रवचने च भावविशुद्धियुक्तोऽनुरागो भक्ति:।।१०।। अरिहंत, आचार्य, बहुश्रुत और प्रवचन इनमें भाव विशुद्धिपूर्वक अनुराग का होना भक्ति है। यहाँ पर अरिहंत भक्ति से प्रयोजन है अत: चौंतीस अतिशय, आठ प्रातिहार्य और चार अनंत चतुष्टय से सहित तथा अठारह दोषों से रहित वीतराग, सर्वज्ञ, हितोपदेशी जिनेन्द्र भगवान की भक्ति करना अरिहंत भक्ति है।…