स्वाध्याय प्रारंभ एवं समापन की विधि अथ पौर्वाण्हिक स्वाध्यायप्रतिष्ठापनक्रियायां श्रुतभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहं। णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।। चत्तारिमंगलं-अरिहंत मंगलं, सिद्ध मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं। ‘ चत्तारि लोगुत्तमा-अरिहंत लोगुत्तमा, सिद्ध लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा। चत्तारि शरणं पव्वज्जामि-अरिहंत शरणं पव्वज्जामि, सिद्ध शरणं पव्वज्जामि, साहू शरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मो…
धर्मचक्र विधान परमपूज्य चारित्रश्रमणी आर्यिका श्री अभयमती माताजी द्वारा रचित कतिपय विधानों की शृँखला में ‘‘धर्मचक्र विधान’’ एक सुन्दर कृति है। तीर्थंकर भगवान के केवलज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् कुबेर द्वारा समवसरण की रचना होती है, उस समवसरण में चारों दिशाओं में सर्वाण्हयक्ष अपने मस्तक पर धर्मचक्र को धारण करते हैं तथा तीर्थंकर के श्रीविहार…
आत्मानुशासन दिगम्बर जैन समाज में प्रचलित आत्मानुशासन नामक महान ग्रंथ आचार्य श्री गुणभद्र स्वामी की अनुपम कृति है। यह ग्रंथ अपने नाम को सार्थक करता हुआ आत्मा पर अनुशासन करने की विद्या सिखाता है। व्यवहारिक जीवन में हम देखते हैं कि जो छात्र/छात्रा, पुत्र-पुत्री आदि अनुशासन में रहकर अपना जीवन व्यतीत करते हैं, वे अपने…
कैसे करे व्यक्तिव का विकास आस्था — विश्वास का आधार : स्वाध्याय हमने यह जाना है कि स्वाध्याय जानने अथवा ज्ञान का अमोघ साधन तो है ही, इससे हमारी मान्यता अथवा विश्वास भी निर्मल और दृढ़ हो जाता है। अपूर्ण और संशय—युक्त विश्वास हमारे पतन का कारण बन जाता है। जो बात हम किसी महापुरूष…
प्रथमानुयोग में क्या है ? -गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी प्रथमानुयोगमर्थाख्यानं चरितं पुराणमपि पुण्यम्। बोधिसमाधिनिधानं बोधति बोधः समीचीनः।।१।। अर्थ– जो शास्त्र परमार्थ के विषयभूत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थ का कथन करने वाला है, एक पुरुष के आश्रित कथा को, त्रेसठ शलाका पुरुषों के चरित्र को तथा पुण्य के आस्रव करने वाली कथाओं को कहता…