श्री महावीर जिनपूजा अथ स्थापना मत्तगयंद छंद श्रीमत वीर हरे भवपीर, भरें सुखसीर अनाकुलताई। केहरि अंक अरीकरदंक, नये हरि पंकति मौलि सुआई।। मैं तुमको इत थापत हौं प्रभु, भक्तिसमेत हिये हरषाई। हे करूणा-धन-धारक देव, इहाँ अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई।। ॐ ह्रीं श्रीवद्र्धमानजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीवद्र्धमानजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः…
मेरी भावना (रचयिता-आचार्य जुगलकिशोर मुख्तार) जिसने राग द्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्षमार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया।। बुद्ध, वीर, जिन, हरि, हर, ब्रह्मा, या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति-भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो।।१।। विषयों की आशा नहिं जिनके साम्य-भाव धन रखते हैं। निज-परके हित-साधन में…