मंडप प्रतिष्ठा विधान चाल—शेर— ॐ मणिमयी स्तंभ से उँचा महामंडप। दसविध ध्वजाओं से महारमणीय है मंडप।। तोरण चंदोवा चंवर छत्र पुष्पहार से। अतिशोभता मंगल कलश व धूप घटों से।।१।। मंडपांत: पुष्पांजलिं क्षिपेत्। (मंडप के अन्दर सब तरफ और भूषण आदि वस्तुओं पर पृथक्-पृथक् चंदन से सहित पुष्पांजलि क्षेपण करें। पुन: मंडप पर पाँच मंगल कलश…
महामंडलाराधना जिनानामपि सिद्धानां महर्षीणां समर्चनात्। पाठात्स्वस्त्ययनस्यापि मन:पूर्वं प्रसादये।।१।। मन: प्रसत्तिसूचनार्थं अर्चनापीठाग्रत: पुष्पांजलिं क्षिपेत्। अर्हन्त पूजा स्थापना गीता छंद अरिहंत प्रभु ने घातिया को घात निज सुख पा लिया। छ्यालीस गुण के नाथ अठरह दोष का सब क्षय किया।। शत इंद्र नित पूजें उन्हें गणधर मुनी वंदन करें। हम भी प्रभो! तुम अर्चना के हेतु अभिनन्दन…
मंगलाष्टक -1 श्रीमन्नम्रसुरासुरेन्द्रमुकुटप्रद्योतरत्नप्रभा , भास्वत्पादनखेन्दव: प्रवचनांभोधींदव: स्थायिन:। ये सर्वे जिनसिद्धसूर्यनुगतास्ते पाठका: साधव:, स्तुत्या योगिजनैश्च पंचगुरव: कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम्।।१।। सम्यग्दर्शन बोधवृत्तममलं रत्नत्रयं पावनं, मुक्तिश्रीनगराधिनाथजिनपत्युक्तोपवर्गप्रद: । धर्म: सूक्तिसुधाश्च चैत्यमखिलं चैत्यालयं श्र्यालयं, प्रोत्तंक च त्रिविधं चतुर्विधममी कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम्।।२।। नाभेयादिजिनाधिपास्त्रिभुवनख्याताश्चतुर्विंशति:, श्रीमंतो भरतेश्वरप्रभृतयो ये चक्रिणो द्वादश। ये विष्णु-प्रतिविष्णु-लांगलधरा: सप्तोत्तराविंशति— स्त्रैकाल्ये प्रथितास्त्रिषष्टिपुरुषा: कुर्वन्तु मे (ते) मंगलम्।।३।। देव्योऽष्टौ च…
संध्यावंदन शम्भु छंद पूर्वाण्ह समय पावन जल से, निज हाथ-पैर-मुख धो करके। वर्णोत्तम श्रावक पूर्व दिशा में, मुख कर बैठे आसन से।। गुरुवर से कहे मंत्र से नित, संध्यावदंन जो करते हैं। वे धर्मध्यान में रत मानव, नित स्वस्थ सुखी ही रहते हैं।।१।। (दोनों हाथ जोड़कर ऐसा संकल्प करें।) ॐ अद्य भगवतो महापुरुषस्य श्रीमदादिब्रह्मणो मते…
अभिषेक के अनन्तर करने योग्य क्रियाएँ (श्री पूज्यपाद स्वामी द्वारा कथित) विधिवत् अभिषेक करके नित्य पूजा के बाद अंत में जो विधि करनी चाहिए, उसके लिए ‘‘अभिषेक पाठ’’ में ही श्री पूज्यपाद स्वामी ने अंत में चार श्लोक दिये गये हैं, उन्हें देखकर विधि करना शास्त्रोक्त है। निष्ठाप्यैवं जिनानां सवनविधिरपि प्राच्र्यभूभागमन्यं। पूर्वोत्तैर्मंत्रयंत्रैरिव भुवि विधिनाराधनापीठयंत्रतम्।। कृत्वा…
पूजामुखविधि नि:संग हो हे नाथ! आप दर्श को आया। स्नान त्रय से शुद्ध धौत वस्त्र धराया।। त्रैलोक्य तिलक जिनभवन की वंदना करूँ। जिनदेवदेव को नमूँ संपूर्ण सुख भरूँ।।१।। (जिनमंदिर के निकट पहुँचकर यह श्लोक पढ़कर मंदिर को नमस्कार कर चारों दिशा में तीन-तीन आवर्त एक-एक शिरोनति करते हुए मंदिर की तीन प्रदक्षिणा देवें पुन: पैर…
सकलीकरणविधि अर्हंतो मंगलं कुर्यु: सिद्धा: कुर्युश्च मंगलम्। आचार्या: पाठकाश्चापि साधवो मम मंगलम्।।१।। झं वं ह्व: प: ह: लिखे, गुरुमुद्रा के अग्र। झरते अमृत से करे, मंत्रस्नान पवित्र।।२।। (पंचगुरुमुद्रा बनाकर उनके अग्रभागों पर झं वं ह्व: प: ह: ये पाँच मंत्र क्रम से लिखें। उस मुद्रा को मस्तक पर रखकर यह चिंतवन करें कि इन अक्षरों…
देवियों और माता मरुदेवी के गूढ़ प्रश्न एवं उत्तर 1. ‘श्रीदेवी’ का प्रश्न- तर्ज-एक परदेशी………………..। तेरे दर पे आके माता पूछूँ प्रश्न मैं, तेरे ज्ञान से भी बनूँ ज्ञानवान मैं। हे माता तेरे, गर्भ बसे प्रभु हैं, तीन ज्ञानधारी तीर्थंकर प्रभु हैं।। कौन सा प्राणी पिंजड़े में रहता, कौन कठोर शब्द करता है-शब्द करता है?…