भगवान महावीर का संक्षिप्त परिचय -गीता जैन, स्योहारा भगवान महावीर का जीव पूर्व में सोलहवें स्वर्ग के पुष्पोत्तर विमान में उत्तम इन्द्र था। वहाँ पर उसकी आयु बाईस सागर की थी, जब उसकी आयु छह महीने की रह गई और वह स्वर्ग से अवतार लेने के सन्मुख हुआ तब सौधर्म इन्द्र की आज्ञा से कुबेर…
गिरि पार्श्वनाथ पहले पहाड़ से लगभग ४ किमी. पहाड़ पर चलने पर दूसरा पहाड़ आता है। पहाड़ के ऊपर सपाट मैदान में एक छतरी में दो चरण चिन्ह बने हुए हैं। इनके संबंध में अनुश्रुति है कि यहाँ भगवान महावीर का समवसरण आया था। उनकी स्मृति में ये चरण चिन्ह बनाये गये हैं। यहाँ से…
नंद्यावर्त महल की पावनता -ब्र. (कु.) इन्दु जैन (संघस्थ-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी) जैनधर्म के चौबीसवें एवं अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर ने आज से २६०० वर्ष पूर्व बिहार प्रान्तस्थ कुण्डलपुर नगरी में महाराजा सिद्धार्थ की महारानी त्रिशला देवी की पवित्र कुक्षि से जिस सात खण्ड वाले नंद्यावर्त महल में जन्म लिया था उसके बारे में उत्तरपुराण…
दिगम्बर-परम्परा में गौतम स्वामी -डॉ. अनिल कुमार जैन जैनों की दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में गौतम स्वामी का महत्वपूर्ण स्थान है। ये भगवान महावीर के प्रथम गणधर थे। गौतम स्वामी वर्तमान जैन वाङ्मय के आद्य-प्रणेता थे। दिगम्बर आर्ष ग्रंथों में भगवान् महावीर को भाव की अपेक्षा समस्त वाङ्मय का अर्थकर्ता अथवा मूलतंत्र कर्ता अथवा…
भगवान महावीर शासन की आचार्य परम्परा -उमेश जैन, फिरोजाबाद भगवान महावीर का निर्वाण ५२६ ईसा पूर्व में हुआ। उनको मोक्ष गए अब २५३० वर्ष हो रहे हैं। जैन दर्शन में यह काल भगवान महावीर का शासन काल माना जाता है। महावीर का यह शासन काल आगत चौबीसी के प्रथम तीर्थंकर के केवलज्ञान प्राप्त होने तक…
मैं समय हूँ (नाटिका) ‘समय’ के नाम से कुण्डलपुर का इतिहास एक वार्ता(फरवरी २००३ कुण्डलपुर में पंचकल्याणक महोत्सव के अवसर पर मंचित एक रूपक) (पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी से कतिपय भक्तों की यह वार्ता है। पूज्य माताजी के द्वारा समय के नाम से शास्त्रीय तथ्य कहलाए गए हैं। कृपया इसे पढ़ें और नाटक मंचों…
भगवान पार्श्वनाथ की केवलज्ञान भूमि अहिच्छत्र तीर्थ का परिचय -ब्र. (कु.) इन्दु जैन (संघस्थ-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी) उत्तरप्रदेश के बरेली जिले की आंवला तहसील में स्थित अहिच्छत्र आजकल रामनगर का एक भाग है जिसे प्राचीन काल में संख्यावती नगरी कहा जाता था। तेईसवें तीर्थंकर भगवान पार्श्वनाथ की केवलज्ञानकल्याणक भूमि अहिच्छत्र के बारे में आचार्य जिनप्रभसूरि…
श्री गिरनार जी तीर्थक्षेत्र का परिचय लेखक-पीठाधीश क्षुल्लक मोतीसागर गुजरात प्रान्त में स्थित गिरनार पर्वत एक निर्वाणक्षेत्र के रूप में सुप्रसिद्ध तीर्थ है। षट्खण्डागम सिद्धान्तशास्त्र की आचार्य वीरसेन कृत धवला टीका में इसे क्षेत्र मंगल माना है। इसे ऊर्जयन्त गिरि भी कहते हैं। आचार्य यतिवृषभ ने भी तिलोयपण्णत्ति नामक ग्रंथ में इसी आशय की पुष्टि…