संस्कार (१) अरविन्द महाराज एकदम आश्चर्यान्वित होेते हुए बोले-‘ऐ!! मंत्री जी क्या-क्या, आपने क्या कहा? क्या मुझसे कोई नाराजगी का प्रसंग आया है?’ ‘नहीं-नहीं महाराज! आप अन्यथा न सोचें। प्रभो! आपके पिता और पितामह आदि बुजुर्गों ने तथा मेरे माता-पिता, पितामह आदि बुजुर्गों ने जिस आश्रय को अंत में स्वीकार किया है और जो कि…
क्या रावण अहिंसक था शुभचंद्र- गुरूजी ! क्या रावण अहिंसा धर्म को मानने वाला था ? गुरूजी- हाँ,बरत ! वह अहिसा धर्म का प्रेमी था ” जीवों कि हिंसा में प्रवृत्त हुए मिथ्याद्रष्टियों का बलपूर्वक निग्रह करता था ” इसी सन्दर्भ में एक घटना पद्मपुराण में आई है ” उसे तुम सुनो- जब रावण दिग्विजय…
‘भगवती आराधना’ के निरुक्त शब्द ‘भगवती आराधना’ या ‘आराहणा भगवदी’ प्राकृतभाषा में रचति एक ऐसी रचना हैं; जिसमें आचार-विचार, सिद्धान्त, तत्त्वाचितन आदि का समावेश है। आचार्य शिवार्य ने विशाल जन-मानस की भावना को ध्यान में रखकर मानसिक सन्तुलन बनाए रखने के लिए संभवत: इसकी रचना की होगी। इसमें मानसिक पर्यावरण का पूर्ण संरक्षण है। जीव…
बुजुर्ग हमारी सम्पत्ति हैं, बोझ नहीं दर्द क्या होते हैं, ये फासले बता सकते हैं, गिरते क्यों हैं, ये आँखों से आंसू बता सकते हैं।। मनुष्य के जीवन में माता—पिता का स्थान सर्वोपरि और सर्वोच्च है। संसार में माता—पिता का ही आशीष अमृत का वह स्रोत है, जिससे जीवन गतिमान होता है। माता—पिता के मन…
जैनधर्म के चौदहवें तीर्थंकर श्री अनन्तनाथ भगवान् दोष अनन्त नष्ट कर, जिनने गुण अनत को प्राप्त किया । तीर्थंकर अनन्त बन कर इस जगती का उपकार किया ।। नमन करें हम आज उन्हें और निज अनन्त पद पायें । सोलहकरण भावना भायें, औ जिन अनन्त बन जायें ।। धातकी खण्ड द्वीप के पूर्व मेरु से…
अंगूठा देखकर मालूम हो जाती हैं स्वभाव की ये बातें हथेली में रेखाओं के साथ ही उंगलियों और हथेली की बनावट का भी अध्ययन किया जाता है। अंगूठा भी स्वभाव और भविष्य से जुड़ी कई बातें बता सकता है। यहां जानिए हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार सिर्फ अंगूठे के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य…
जंबूकुमारस्य जन्म वैराग्यं च (जंबूकुमार जन्म एवं वैराग्य) संस्कृत भाषा में- अस्ति श्रेणिकस्यानुशासने राजगृहे नगरेर्हदास श्रेष्ठी, तस्य धर्मपरायणा भार्या जिनमती। कदाचित् रात्रौ पश्चिमभागे सा जिनमती जम्बूवृक्षादिपंचसुस्वप्नान् अपश्यत्। प्रात: पत्या सार्धं जिनमंदिरे गत्वा त्रिज्ञान- धारिणो मुनेर्मुखारविन्दात् चरमशरीरिण: पुत्रस्य लाभो भविष्यतीति श्रुत्वा संतुष्टौ बभूवतु:। पूर्वोक्तो विद्युन्माली अहमिन्द्रचरो जीव: स्वर्गात् प्रच्युत्य जिनमत्यां गर्भे समागत्य नवमासानंतरं मानुषपर्यायं अलभत। फाल्गुनमासि…
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं रीति, प्रीति, नीति हमारे आचरण और व्यवहार पर पूरे संसार की दृष्टि जमी है। सभी उस मार्ग का अनुसरण करते हैं जिस पर महाजन चलते हैं। महा यीन महान और जन मानी व्यक्ति । हम इसलिये विश्व गुरू कहलाये। यह पद हमारे को यूं ही नहीं मिल गया । इसके…