सदोषमुनि
११. सदोषमुनि पार्श्वस्थ, कुशील, ससंक्त, अवसंज्ञ और मृगचारित्र ये मुनि दर्शन, ज्ञान, चारित्र में नियुक्त नहीं है और मन्दसंवेगी है।’’ पार्श्वस्थ – ‘पार्श्व तिष्ठतीति पार्श्वस्थ:’ इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो संयत के गुणों की अपेक्षा पास में-निकट में रहता है वह पार्श्वस्थ है। ‘‘जो मुनि वसतिकाओं में आसक्त रहता है, मोह की बहुलता है, रातदिन…