ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती भगवान नेमिनाथ तीर्थंकर और पार्श्वनाथ तीर्थंकर के अंतराल में ये बारहवें चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त हुए हैं। ये ब्रह्मराजा की महारानी चूड़ादेवी के पुत्र थे। इनके शरीर की ऊँचाई ७ धनुष एवं सात सौ वर्ष की आयु थी। इसमें इनका कुमारकाल २८ वर्ष, महामण्डलेश्वर काल ५६ वर्ष, दिग्विजयकाल १६ वर्ष, चक्रवर्ती राज्यकाल ६००…
तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक में न्याय दर्शन की शास्त्रीय समीक्षा वैदिक दर्शनों में न्याय एक महत्त्वपूर्ण दर्शन है। न्याय शब्द का प्रयोग अत्यन्त प्राचीन है। न्यायसूत्र नाम से सूचित होता है कि उस समय न्याय शब्द का प्रयोग न्यायविद्या या न्याय दर्शन के अर्थ में होने लगा था। वात्स्यायन ने न्याय का पारिभाषिक अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा…
महापुराण प्रवचन महापुराण प्रवचन श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। महानुभावों! महापुराण ग्रंथ में सम्पूर्ण द्वादशांग का अंश समाविष्ट है। एक बार आप सभी इसका स्वाध्याय अवश्य करना चाहिए। विदेहक्षेत्र की अलका नगरी में राजा महाबल के राजदरबार में जन्मदिवस की संगोष्ठी चल रही है। स्वयंबुद्ध मंत्री द्वारा राजा को अनेक धर्मोपदेश के…
रत्नत्रय सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को रत्नत्रय कहते हैं। इन तीनों की एकता ही मोक्षमार्ग है। इसके दो भेद हैं- (१) व्यवहार रत्नत्रय (२) निश्चय रत्नत्रय व्यवहार सम्यग्दर्शन] जीवादि तत्त्वों का और सच्चे देव, शास्त्र, गुरु का २५ दोष रहित श्रद्धान करना व्यवहार सम्यग्दर्शन है। (इसका विस्तृत वर्णन तीसरे भाग में आ चुका है।) व्यवहार…
Anekant and Mutual Tolerance – By Prof. M.L. Jain Every living being, every religion tries to answer and faces three Central questions in every country all the time-in search of happiness, bliss and truth 1. What should l belive in? What is the corret faith? 2. What should I learn? What should I know? 3.What…
घर कैसा हो ?उसे स्वर्ग कैसे बनाये ? घर में श्रद्धा, प्रेम, शांती, ज्ञान, नजर आना चाहिए। घर के लोगों की धर्मपर, गुरुपर श्रद्धा होनी चाहिए। परिवार में एक दूसरे से प्रेम से रहना होगा। प्रेम से शांति बनती है। ज्ञान यह धर्म का मूल है। सबको ज्ञान प्राप्त करना होगा। आत्मा के लिए आत्मिक…
भगवान पार्श्वनाथ केवलज्ञानकल्याणक भूमि -पं. शिवचरनलाल जैन, मैनपुरी श्री पार्श्वनाथ: स्वपरात्मविज्ञ:, श्रेणीं श्रित: स्वात्मजशुक्लयोगै:। घाती निहत्वा जगदेकसूर्य:, कैवल्यमाप्नोत् तमहं स्तवीमि।। (आ. ज्ञानमती, पार्श्वस्तुति जिनस्तोत्र संग्रह) स्वपर के ज्ञाता, शुक्लध्यान योग से श्रेणी, क्षपक श्रेणी में आरूढ़, घातिया कर्मों के नाश से केवलज्ञानकल्याणक को प्राप्त करने वाले विश्व समुदाय के उत्कृष्ट सूर्य भगवान पार्श्वनाथ की मैं…
जीवसमास आदि जिनके द्वारा अनेक जीव संग्रह किये जायें, उन्हें जीवसमास कहते हैं। जीवसमास के चौदह भेद हैं-एकेन्द्रिय के बादर और सूक्ष्म ऐसे दो भेद, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय के सैनी-असैनी ऐसे दो भेद, इस प्रकार सात भेद हो जाते हैं। इन्हें पर्याप्त-अपर्याप्त ऐसे दो से गुणा करने पर जीवसमास के चौदह भेद हो…
१०८ फुट उत्तुंग भगवान ऋषभदेव मूर्ति निर्माण स्थली मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र मांगीतुंगी सिद्धक्षेत्र ९९ करोड़ महामुनियों की निर्वाणस्थली के रूप में विश्व प्रसिद्ध है, जिसे दक्षिण के लघु सम्मेदशिखर पर्वत के रूप में भी जैन समाज में मान्यता प्राप्त है। यह तीर्थ ९ लाख वर्ष पूर्व भगवान मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थ काल से पूज्यता को…