आचार्य श्री धर्मसागरजी का एक संक्षिप्त परिचय आचार्यश्री धर्मसागर जी महाराज विक्रम संवत् १९७० में पौष शु. १५ के दिन राजस्थान में बूंदी जिला के अंतर्गत ‘गम्भीरा’ नाम के गांव में सेठ श्री बख्तावरमल जी की धर्मपत्नी उमराव बाई की कुक्षि से एक बालक का जन्म हुआ था। माता-पिता ने उसका नाम चिरंजीलाल रखा…
तीर्थंकर चन्द्रप्रभ भगवान इस मध्यलोक के पुष्कर द्वीप में पूर्व मेरू के पश्चिम की ओर विदेह क्षेत्र में सीतोदा नदी के उत्तर तट पर एक ‘सुगन्धि’ नाम का देश है। उस देश के मध्य में श्रीपुर नाम का नगर है। उसमें इन्द्र के समान कांति का धारक श्रीषेण राजा राज्य करता था। उसकी पत्नी धर्मपरायणा…
गतिमार्गणा से कषायमार्गणा तक बंधक-अबंधको का निरूपण अथ बन्धक सत्त्वप्ररूपणा मंगलाचरणम् सिद्धान्नत्वा जगत्पूज्यान्, वासुपूज्यं जिनं पुनः। सर्वाश्चूलिगिरिस्थाश्च, नूयन्ते मूर्तयोऽधुना।।१।। देवीं सरस्वतीं स्तुत्वा, सा हृदयेऽवतार्यते। यस्याः कृपाप्रसादेना-भीप्सितार्थाः फलन्ति नः।।२।। श्रीधरसेनसूरीन्द्रः, पुष्पदन्तो मुनिस्तथा। श्रीभूतबलिसूरिश्च, स्तूयंते श्रद्धयाऽनिशम्।।३।। क्षेत्रेऽत्र खानियानाम्नि, समाधिं प्राप्य स्वर्गतः। श्रीशांतिसन्धिुसूरेर्यः, प्रथम: पट्टाधिपो भुवि।।४।। श्रीवीरसागराचार्यो, वंद्यतेऽसौ मया मुदा । येन ज्ञानमतिं कृत्वा मां जगत्तारकोऽभवत्।।५।। जीयादाद्यो गुरुर्लोकेऽप्याचार्यो…
चक्रवर्ती वज्रनाभि (छठा भव) -प्रथम दृश्य- (सामूहिक प्रार्थना) अश्वपुर नगर के राजा वङ्कावीर्य की पट्टरानी विजया देवी अपने राजमहल में सुखपूर्वक निद्रा में मग्न हैं, उषाकाल की लालिमा पूर्व दिशा में खिलने वाली है। सखियाँ प्रभाती गा रही हैं और वीणा की मधुर ध्वनि के साथ प्रभु का मधुर गुणस्तवन करते हुए रानी विजयादेवी को…
जीव का ऊध्र्वगमन स्वभाव है जीव जिस स्थान में सम्पूर्ण कर्मों से छूटता है ठीक उसी स्थान के ऊपर एक समय में ऊध्र्वगमन करके लोक के अग्रभाग में जाकर स्थित हो जाता है। चूँकि यह ऊध्र्वगमन उसका स्वभाव है। शंका – जीव जिस स्थान में कर्मो से छूटा है उसी स्थान पर रह जाता है।…