जैन विवाह विधि विवाह और उसका उद्देश्य शास्त्र की विधि के अनुसार योग्य उम्र के वर और कन्या का अपनी-अपनी जाति में क्रमश: वाग्दान (सगाई) प्रदान, वरण, पाणिग्रहण होकर अन्त में सप्तपदीपूर्वक विवाह होता है। यह विवाह धर्म की परम्परा को चलाने के लिए, सदाचरण और पुत्र-पुत्री द्वारा कुल की उन्नति के लिए और मन…
परिग्रह परिमाण अणुव्रत की कहानी परिग्रह परिमाण अणुव्रत-धन, धान्य, मकान आदि वस्तुओं का जीवन भर के लिए परिमाण कर लेना, उससे अधिक की वांछा नहीं करना, परिग्रह- परिमाण अणुव्रत है। इस व्रत के पालन करने से आशाएं सीमित हो जाती हैं तथा नियम से सम्पत्ति बढ़ती है। हस्तिनापुर के राजा जयकुमार परिग्रह का प्रमाण कर…
बलदेव बलभद्र एवं श्रीकृष्ण नारायण २१वें तीर्थंकर भगवान नमिनाथ के बाद शौरीपुर के राजा अंधकवृष्टि की सुभद्रा महारानी के दश पुत्र हुए, जिनके नाम- समुद्रविजय अक्षोभ्य स्तिमितसागर हिमवान विजय अचल धारण पूरण अभिचन्द्र वसुदेव तथा सुभद्रा महारानी के दो पुत्रियाँ थीं, जिनके कुंती और माद्री नाम थे। राजा अंधकवृष्टि ने समुद्रविजय को राज्य प्रदान कर…
ब्रह्म बेला का महत्त्व विश्व की प्राय: सभी धर्म संस्कृतियाँ प्रात:काल की ब्रह्मबेला को महत्त्व देती है। परन्तु हमें यह नहीं मालूम कि ब्र्रह्मबेला कहते किसे हैं, इसका क्या महत्त्व है ? सूर्योदय के चौबीस मिनट पहले से सूर्योदय के चौबीस मिनट बाद तक का समय ब्रह्मवेला या ब्रह्ममुहूर्त कहलाता है। इसे ही आत्म—जागरण का…
नववर्ष का संदेश —महावीर प्रसाद, अजमेरा (जोधपुर) हममें गुणों का विकास हो, इसके लिए हमारे सामने ही नववर्ष रूप में उपस्थित होकर आ रहा है। सभी जानते है कि हम अपने चिर—परिचितों को बधाई के रूप में हैप्पी न्यू ईयर कहते हैं। नववर्ष की शुभकामना। लेकिन गहराई से कभी इन शब्दों पर आत्म चिंतन नहीं…
मयूर पिच्छी है पहचान दिगम्बर जैन साधु-साध्वियों की कर्मयोगी स्वस्ति श्री रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी हर धर्म, सम्प्रदाय, जाति और वर्ग विशेष में प्राचीनकाल से अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए कतिपय पहचान चिन्ह / चिन्हों का उपयोग किया जाता रहा है। आज प्रत्येक देश अपने पृथक् अस्तित्व को लेकर प्रतीक चिन्ह के रूप में…
पुण्यफला अरहंता भगवान कुन्दकुन्द देव कहते हैं कि- पुण्णफला अरहंता तेसिं किरिया पुणो हि ओदइया। मोहादीहिं विरहिया तह्मा सा खाइग त्ति मदा।।४५।। अर्थ- अर्हंत भगवान पुण्य प्रकृति के फल हैं और उनकी क्रिया निश्चय से औदयिकी है फिर भी वह मोहादिक से रहित है अत: क्षायिक मानी गई है। श्री अमृतचंद्रसूरि कहते हैं- ‘‘अर्हंत: खलु…
गुणस्थान दर्शनमोहनीय आदि कर्मों की उदय, उपशम आदि अवस्था के होने पर जीव के जो परिणाम होते हैं, उन परिणामों को गुणस्थान कहते हैंं। ये गुणस्थान मोह और योग के निमित्त से होते हैं। इन परिणामों से सहित जीव गुणस्थान वाले कहलाते हैं। इनके १४ भेद हैं- १. मिथ्यात्व २. सासादन ३. मिश्र ४. अविरत…
महासती चन्दना सिन्धु देश की वैशाली नगरी में राजा चेटक राज्य करते थे। वे जिनेन्द्रदेव के परम भक्त थे, उनकी रानी का नाम सुभद्रा था। इन दम्पत्ति के दस पुत्र हुए जो कि धनदत्त, धनभद्र, उपेन्द्र, सुदत्त, सुकम्भोज, अवंâपन, पतंगक, प्रभंजन और प्रभास नाम से प्रसिद्ध हुए तथा उत्तम क्षमा आदि दस धर्मों के समान…