धातकीखण्ड व पुष्करार्ध के मेरु-कुलाचल आदि की संख्या दोण्णि वि इसुगाराणं विच्चाले होंति दोण्णि विजयवरा। चंदद्धसमायारा एक्केक्का तासु मेरुगिरि१।।२७८५।। धादइसंडे दीवे जेत्तियकूडाणि जेत्तिया विजया। जेत्तियसरवर जेत्तियसेलवरा जेत्तियणईआ।।२७८६।। पोक्खरदीवद्धेसुं तेत्तियमेत्ताणि ताणि चेट्ठंति। दोण्णं इसुगाराणं गिरीण विञ्चालभाएसुं।।२७८७।। विजया विजयाण तहा वेयड्ढाणं हवंति वेयड्ढा। मेरुगिरीणं मेरु कुलसेला कुलगिरीणं च।।२७८८।। सरियाणं सरियाओ णाभिगििंरदाण णाभिसेलाणिं। पणिधिगदा तियदीवे च उस्सेहसमं विणा…
णमोकार महामंत्र णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्व-साहूणं।।१।। षट्खण्डागम (धवला टीका) पुस्तक १ पृ. ८। इदाणिं देवदा-णमोक्कार-सुत्तस्सत्थो उच्चदे। षट्खण्डागम (धवला टीका) पुस्तक १, पृ. ४३ से ४५ तक। ‘णमो अरिहंताणं’ अरिहननादरिहन्ता। नरकतिर्यक्कुमानुष्य-प्रेतावास—गत्राशेषदुःखप्राप्तिनिमित्तत्वादरिर्मोहः। तथा च शेषकर्मव्यापारो वैफल्यमुपेयादिति चेन्न, शेषकर्मणां मोहतन्त्रत्वात्। न ”हिमोहमन्तरेण शेषकर्माणि स्वकार्यनिष्पत्तौ व्यापृतान्युपलभ्यन्ते, येन तेषां स्वातन्त्रयं जायेत। मोहे विनष्टेऽपि…
जीवनोपयोगी सामान्य ज्ञान (स्वास्थ्य—सुख—सफलता—शान्तिमय जीवन के सूत्र) प्रथम कक्षा आदर्श दैनिक चर्या (१) प्रात:कालीन चर्या (१) जल्दी सोने से एवं जल्दी उठने से मानव स्वस्थ, सबल, सम्पन्न, सही जीवन जीने वाला होता है अत: सूर्य—अस्त के २—३ घण्टे के बाद सोना चाहिए एवं सूर्य उदय के १—२ घण्टे पहले जाग जाना चाहिए। (२) सोने की…
मुकुटसप्तमी व्रत का स्वरूप मुकुटसप्तमी तु श्रावणशुक्लसप्तम्येव ग्राह्या, नान्या तस्याम् आदिनाथस्य वा पाश्र्वनाथस्य मुनिसुव्रतस्य च पूजां विधाय कण्ठे मालारोप:। शीर्षमुकुटश्च कथितभागमे। मुकुट सप्तमी व्रत अर्थ—श्रावणशुक्ला सप्तमी को ही मुकुट सप्तमी कहा जाता है, अन्य किसी महीने की सप्तमी का नाम मुकुट सप्तमी नहीं है। इसमें आदिनाथ अथवा पाश्र्वनाथ और मुनिसुव्रतनाथ का पूजन कर जयमाला को…
नारी की गरिमा संसार की सृष्टि में स्त्री और पुरुष दो अंग हैं, जैसे-कुम्भकार के बिना चाक से बर्तन नहीं बन सकते अथवा कृषक के बिना पृथ्वी से धान्य की फसल नहीं हो सकती उसी प्रकार स्त्री पुरुष दोनों के संयोग के बिना सृष्टि की परंपरा नहीं चल सकती। इतना सब कुछ होते हुए भी…
अचौर्य अणुव्रत की कहानी अचौर्याणुव्रत – किसी का रखा हुआ, पड़ा हुआ, भूला हुआ अथवा बिना दिया हुआ धन पैसा आदि द्रव्य नहीं लेना और न उठाकर किसी को देना अचौर्याणुव्रत कहलाता है। राजगृही के राजा श्रेणिक की रानी चेलना के सुपुत्र वारिषेण उत्तम श्रावक थे। एक बार चतुर्दशी को उपवास करके रात्रि में श्मशान…
पूर्वाचार्यों द्वारा लिखित ग्रन्थ प्रमाण हैं आगम में जहां दो मत आये हैं वहां टीकाकारों ने दोनों को प्रमाण मानने को कहा है किन्तु एक स्थान पर स्वयं धवला टीकाकार श्री वीरसेनाचार्य ने कहा है कि ‘गोदमो एत्थ पुच्छेयव्वो’’ गौतमस्वामी से पूछना चाहिये चूँकि वे मन:पर्ययज्ञान के धारी, सप्त ऋद्धियों से समन्वित भगवान महावीर स्वामी…
जैन धर्म एवं रंग विज्ञान समता जैन जैन दर्शन में पुदगल के चार लक्षण है—वर्ण रस, गंध, स्पर्श। वर्ण के पाँच प्रकार जैनाचार्यों ने कहे हैं—काला, नीला, लाल, श्वेत। आधुनिक विज्ञान रंगों के सात प्रकार बताता है। बैजानी हपीनाल अर्थात् बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी और लाल। मानव जीवन का रंगों से गहरा संबंध…
नन्दीश्वर द्वीप जम्बूद्वीप से आठवां द्वीप नन्दीश्वर द्वीप है। यह नन्दीश्वर समुद्र से वेष्ठित है। इस द्वीप का मण्डलाकार से विस्तार एक सौ तिरेसठ करोड़ चौरासी लाख योजन है। इस द्वीप में पूर्व दिशा में ठीक बीचोंबीच अंजनगिरि नाम का एक पर्वत है। यह ८४००० योजन विस्तृत और इतना ही ऊंचा समवृत्त-गोल है तथा इन्द्रनील…