नित्य सौभाग्य व्रत(सप्तज्योति कुंकुम व्रत) (जैनेन्द्र व्रत कथा संग्रह मराठी पुस्तक के आधार से) आषाढ़ शुक्ला अष्टमी को उपवास करके मंदिर में जाकर चौबीस तीर्थंकर प्रतिमा का महाभिषेक-पूजा आदि करके, शास्त्र व गुरु की भी पूजा करें पुन: यक्ष-यक्षी आदि की पूजा करें। पुन: चौबीस तीर्थंकर का जाप्य करें- मंत्र-ॐ ह्रीं यक्ष-यक्षीसहितेभ्य: श्री वृषभादि चतुर्विंशतितीर्थंकरेभ्यो…
पुरातत्व का जीर्णोद्धार या नवनिर्माण संतों, विद्वानों और नेतृत्व का मौन,कहीं समाज को तोड़ न दे ! मुझे आश्चर्य होता है, चींटी के प्राण बचाने वाले अहिंसक दिगम्बर जैन संत जब प्राचीन मंदिरों को बेरहमी से तोड़ते हैं और यह भी कारण स्पष्ट नहीं करते कि मंदिर क्यों तोड़े जा रहे हैं। तो एक सच्चे…
भगवान पार्श्वनाथ की गर्भ-जन्म एवं दीक्षाकल्याणक भूमि वाराणसी तीर्थ का परिचय प्रस्तुति-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चन्दनामती माताजी जैन तीर्थ-काशी (वाराणसी) जैनों का प्रसिद्ध तीर्थ है। तीर्थक्षेत्र के रूप में इसकी प्रसिद्धि सातवें तीर्थंकर भगवान सुपार्श्वनाथ के काल से ही हो गयी थी। जब यहाँ उनके गर्भ, जन्म, तप और केवलज्ञान कल्याणक मनाये गये, उस समय काशी के…
गुरू दीक्षा का महत्व गुरु के पास जो श्रेष्ठ ज्ञान होता है, वह अपने शिष्य को प्रदान करने और उस ज्ञान में उसे पूरी तरह से पारंगत करने की प्रक्रिया की गुरु दीक्षा कहलाती है। गुरु दीक्षा गुरू की असीम कृपा और शिष्य की असीम श्रद्धा के संगम से ही सुलभ होती है। शास्त्रों में…
चतुर्थ अधिकार बलभद्र श्रीरामचन्द्र एवं लक्ष्मण नारायण अयोध्या के राजा दशरथ के चार रानियाँ थीं, उनके नाम थे-अपराजिता, सुमित्रा, केकयी और सुप्रभा। अपराजिता (कौशल्या) ने पद्म (रामचन्द्र) नाम के पुत्र को जन्म दिया। सुमित्रा से लक्ष्मण, केकयी से भरत और सुप्रभा से शत्रुघ्न ऐसे दशरथ के चार पुत्र हुए। राजा दशरथ ने इन चारों को…
दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र-खड़ौआ, जिला-एटा —डॉ. कु.मालती जैन, मैनपुरी पृथ्वी का पर्यायवाची शब्द है-‘रत्नगर्भा’ यह पृथ्वी अपने गर्भ में न जाने कितने रत्नों को छिपाये है, किसी विशिष्ट अवसर पर, किसी शुभ निमित्त से जब कोई देदीप्यमान अमूल्य रत्न पृथ्वी के गर्भ से बाहर आता है तब उसकी दिव्य आभा से समस्त परिसर आलोकित हो…