[[श्रेणी:सूक्तियां]] ==Learning English== The use of Proverbs एन.एस.बिस्सा – बोलचाल में कहावतों का इस्तेमाल करना आम बात है। अंग्रेजी भाषा की कहावतों को समझकर आप इनका प्रयोग करें। Proverbs 1. Example is better than Precept. कथनी से करनी श्रेष्ठ है। 2. A blind man is no judge of colours. बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद…
संगीत साधकों के एक इष्ट — ऋषभदेव जयचंद शर्मा संगीत कला के सप्त स्वरों में षड़ज एवं पंचम का विशिष्ट महत्व है। तालपुरा वाद्य के चारों तारों में प्रथम तार पंचम में एवं शेष तीनों तारों को षड़ज स्वर में मिलाया जाता है । षड़ज—पंचम— भावानुसार अन्य तंतु—वाद्य यंत्रों के तारों का मिलान उपर्युक्त भावानुसार…
नव पदार्थ श्री गौतमस्वामी विरचित पाक्षिक प्रतिक्रमण में— ‘से अभिमद जीवाजीव-उवलद्धपुण्णपाव-आसवसंवरणिज्जर-बंधमोक्खमहिकुसले।।। क्रियाकलाप पृ. १०७, मुनिचर्या पृ. २९२। जीव अजीव पुण्य पाप आस्रव संवर निर्जरा बंध मोक्ष। ये क्रम है। यही क्रम षट्खण्डागम धवला टीका पुस्तक १३ में है। ‘‘जीवाजीव- पुण्ण-पाव-आसव-संवर-णिज्जरा-बंध-मोक्खेहि।णवहिं पयत्थेहि वदिरित्तमण्णं ण किं पि अत्थि, अणुवलंभादो।। षट्खण्डागम (धवला) पृ. १३, पृ. ६४।’ अर्थात् जीव,…
श्री वीरसागराष्टकम् यस्य प्रसन्नमुखमण्डलमीक्षमाणा। भव्या भवन्ति सततं भवतो विभीता:। त्यक्त्वा परिग्रहचयं मुनयो भवन्त:। कुर्वन्ति दुर्लभतरं स्वहितं समन्तात्।।१।। यस्यास्यनिर्गतवचोऽमृतपानतृप्तो विज्ञो न जातु रमते सुरभूमिमध्ये। यस्यांघ्रियुग्ममभिनम्य नरा: कदाचिन्। नैवानमन्ति कुगुरुन् पतितान् भवाब्धौ।।२।। यदूदीक्षिता मुनिवरा: सुदृढां व्रतानां। संपालने विशदवृत्त युता लसन्ति। आर्याश्च वृत्तपरिपालनपूर्णदक्षा:। सन्त्यत्र गौरवयुता: सुनुता मर्हिद्ध।।३।। यत्सन्निधौ भुवि बभूव महातपस्वी। श्री चन्द्रसागर मुनि: प्रवर:…
महापुराण प्रवचन-१ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। महापुराण ग्रंथ के इस मंगलाचरण में श्री जिनसेनाचार्य ने किसी का नाम लिए बिना गुणों की स्तुति की है। जो अंतरंग बहिरंग लक्ष्मी से सहित एवं सम्पूर्ण ज्ञान से सहित हैं, धर्मचक्र के धारक हैं, तीन लोक के अधिपति हैं और पंचपरिवर्तनरूप संसार का भय…
सम्यग्दर्शन ही धर्म का मूल है (दर्शनपाहुड़ के आधार से) जिस प्रकार से मकान का मूल आधार नींव है और वृृक्ष का मूल आधार पाताल तक गई हुई उसकी जड़ें हैं उसी प्रकार से धर्म का मूल आधार सम्यग्दर्शन है क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना धर्मरूपी मकान अथवा धर्मरूपी वृक्ष ठहर नहीं सकता है। जीवरक्षारूप आत्मा…
अड़िंदा का श्री पार्श्वनाथ मंदिर : अभिलेख एवं इतिहास सारांश यहाँ के मुख्य मंदिर परिसर में एवं बाहर कुछ महत्वपूर्ण अभिलेख विद्यमान है जिनके ऐतिहासिक महत्व की ओर अब तक किसी का ध्यान नहीं हो पाया है। राष्ट्रकूट से संबंधित अभिलेखों से संबद्ध क्षेत्र में उनका शासन होने एवं उनका जैन धर्मानुयायी होना ज्ञात होता…