प्राचीन ग्रंथों के आलोक में वर्तमान कर-व्यवस्था वैदिक अर्थव्यवस्था का मूलमंत्र है- प्रजारंजन, रक्षण और संवर्द्धन । ऋग्वेद में कर-र्सग्रह के लिए निर्देश है- ‘ जो राजा सूर्य और मेघ के स्वभाव वाला होकर आठ मास प्रजाओं से कर लेता है और चार मास यथेष्ट पदार्थो को देता है, इस प्रकार सब प्रजाओं का रंजन…
ज्ञानामृत सुदं में आउस्संतो ‘‘पढमं ताव सुदं में आउस्संतो।’’ हे आयुष्मन्तों भव्यों ! मैंने प्रथम ही सुना है। क्या सुना है ? ‘‘ गिहत्थधम्मं’’ गृहस्थ धर्म सुना है। किनसे सुना है ? ‘‘ भयवदा महदिमहावीरेण’’ भगवान् महति महावीर के श्रीमुख से सुना है। वे भगवान् महावीर वैâसे हैं ? ‘‘समणेण महाकस्सवेण सवण्हाणेण सव्वलोयदरसिण।’’ जो श्रमण…
भाग्योदया यह संसार पुन्य पाप का खेल है। कभी पुण्य का उदय आता है तो मानव को अनायास संसार के वैभव प्राप्त हो जाते हैं और जब पाप का उदय आता है तब देखते—देखते सारी सम्पदा विलीन हो जाती है, जैसे पवन के झकोरों से बादलों का समूह। वास्तव में यह संसार संयोग—वियोग सुख—दुख और…
पूर्व दिशा खाली होने से धन और जन की वृद्धि होती है हर कोई अपने सुन्दर भवन में सुखी रहना चाहता है। इसके लिये वह साज सज्जा भी अनेक प्रकार से करता है किन्तु जब वह अपने जीवन में सब-कुछ ठीक-ठाक करने के बाद अशांति, अपयश, धन एवं जन हानि देखता है तो वह…