‘भगवती आराधना’ के निरुक्त शब्द ‘भगवती आराधना’ या ‘आराहणा भगवदी’ प्राकृतभाषा में रचति एक ऐसी रचना हैं; जिसमें आचार-विचार, सिद्धान्त, तत्त्वाचितन आदि का समावेश है। आचार्य शिवार्य ने विशाल जन-मानस की भावना को ध्यान में रखकर मानसिक सन्तुलन बनाए रखने के लिए संभवत: इसकी रचना की होगी। इसमें मानसिक पर्यावरण का पूर्ण संरक्षण है। जीव…
बुजुर्ग हमारी सम्पत्ति हैं, बोझ नहीं दर्द क्या होते हैं, ये फासले बता सकते हैं, गिरते क्यों हैं, ये आँखों से आंसू बता सकते हैं।। मनुष्य के जीवन में माता—पिता का स्थान सर्वोपरि और सर्वोच्च है। संसार में माता—पिता का ही आशीष अमृत का वह स्रोत है, जिससे जीवन गतिमान होता है। माता—पिता के मन…
जैनधर्म के चौदहवें तीर्थंकर श्री अनन्तनाथ भगवान् दोष अनन्त नष्ट कर, जिनने गुण अनत को प्राप्त किया । तीर्थंकर अनन्त बन कर इस जगती का उपकार किया ।। नमन करें हम आज उन्हें और निज अनन्त पद पायें । सोलहकरण भावना भायें, औ जिन अनन्त बन जायें ।। धातकी खण्ड द्वीप के पूर्व मेरु से…
अंगूठा देखकर मालूम हो जाती हैं स्वभाव की ये बातें हथेली में रेखाओं के साथ ही उंगलियों और हथेली की बनावट का भी अध्ययन किया जाता है। अंगूठा भी स्वभाव और भविष्य से जुड़ी कई बातें बता सकता है। यहां जानिए हस्तरेखा ज्योतिष के अनुसार सिर्फ अंगूठे के आधार पर व्यक्ति के स्वभाव और भविष्य…
जंबूकुमारस्य जन्म वैराग्यं च (जंबूकुमार जन्म एवं वैराग्य) संस्कृत भाषा में- अस्ति श्रेणिकस्यानुशासने राजगृहे नगरेर्हदास श्रेष्ठी, तस्य धर्मपरायणा भार्या जिनमती। कदाचित् रात्रौ पश्चिमभागे सा जिनमती जम्बूवृक्षादिपंचसुस्वप्नान् अपश्यत्। प्रात: पत्या सार्धं जिनमंदिरे गत्वा त्रिज्ञान- धारिणो मुनेर्मुखारविन्दात् चरमशरीरिण: पुत्रस्य लाभो भविष्यतीति श्रुत्वा संतुष्टौ बभूवतु:। पूर्वोक्तो विद्युन्माली अहमिन्द्रचरो जीव: स्वर्गात् प्रच्युत्य जिनमत्यां गर्भे समागत्य नवमासानंतरं मानुषपर्यायं अलभत। फाल्गुनमासि…
जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं रीति, प्रीति, नीति हमारे आचरण और व्यवहार पर पूरे संसार की दृष्टि जमी है। सभी उस मार्ग का अनुसरण करते हैं जिस पर महाजन चलते हैं। महा यीन महान और जन मानी व्यक्ति । हम इसलिये विश्व गुरू कहलाये। यह पद हमारे को यूं ही नहीं मिल गया । इसके…
‘प्रज्ञा’ और ‘प्रमाण’ का औचित्य लोक में अनेकों प्रसंग ऐसे होते हैं, जहाँ ‘प्रज्ञा’ का प्रयोग अपेक्षित होता है, क्योंकि परिस्थितियाँ या तो अस्पष्ट होती हैं या भ्रमोत्पादक या फिर विपरीत ही बात को सिद्ध कर रही होती हैं; ऐसी स्थिति में व्यकित अपनी प्रज्ञा एवं विवेक के आधार पर निर्णय लेता है। तथा कई…
जिन–नामस्मरण की महिमा ‘जअहिं जिणवर सोम अकलंक, सुरसण्णुअ विगअभअ । राअ-रोस-मअ-मोहवज्जिअ, मअणणासण भवरहिअ ।। विसअ सअल तइंदेव णिवज्जिअ ।।२०,५।। अर्थ– हे जिनवर ! आप निर्भर, सोम्य, अकलंक हैं, देवों से वन्दित हैं। आप राग, रोष, मद, मोह से रहित तथा काम के प्रभाव एवं भव से रहित हैं। हे देव ! आप में सम्पूर्ण विषय…
तीर्थंकर जन्मभूमि विकास की आवश्यकता संसार समुद्र से संसारी प्राणियों को पार करने वाले पवित्र स्थल तीर्थ कहे जाते हैं। वे तीर्थ दो प्रकार के होते हैं-द्रव्य तीर्थ और भावतीर्थ। रत्नत्रयस्वरूप भाव-परिणाम भावतीर्थ तथा महापुरुषों की चरणरज से पावन भूमियाँ द्रव्यतीर्थ हैं। उनमें २४ तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप, ज्ञानकल्याणक स्थल तीर्थक्षेत्र, मोक्षकल्याणक स्थल सिद्धक्षेत्र…