पूज्य माताजी की संघस्थ ब्रह्मचारिणी बहनों का परिचय लेखिका-श्रीमती त्रिशला जैन, लखनऊ ब्र. कु. बीना जैन कु. बीना का जन्म कानपुर (उ.प्र.) में १५ दिसम्बर १९६९ में हुआ। आपकी माता का नाम श्रीमती कूमुदनी देवी और पिता का नाम स्व. श्री प्रकाशचंद जैन है। यह आपका सौभाग्य ही है कि आपको विरासत में ही धर्म…
तीर्थों के विकास की आवश्यकता द्वारा- गणिनी ज्ञानमती माताजी वैदिक संस्कृति में संगम को अर्थात् नदियों को तीर्थ मानकर उनमें स्नान करने को पाप प्रक्षालित करने का एक माध्यम माना गया है, पर जैन संस्कृति के अनुसार तीर्थंकर भगवंतों की कल्याणक भूमियों को तीर्थ मानकर उनकी वंदना-पूजा-अर्चना करने से निश्चित ही पापो का क्षालन हो…
रस्परोपग्रहो जीवनाम् और आधुनिक समाज स्वेता जैन – जोधपुर ( राज० ) सारांश श्रमण परम्परा के प्रथम सूत्र ग्रंथ तत्वार्थसूत्र में निहित सूत्र परस्परोग्रहो जीवानाम् आधुनिक समाज व्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ।समाज की व्यवस्थाओं को सुचारू ढंग से संचालित करने में इस सूत्र में निहित जीवन पद्धति बहुत उपयोगी है । इस सूत्र…
१६ – महाराज श्रीपाल को वैराग्य एवं पुत्र धनपाल का राज्याभिषेक महाराज श्रीपाल अपने महल की छत पर बैठे हुए चारों दिशाओं की प्राकृतिक शोभा का अवलोकन कर रहे थे कि छाये हुए बादलों में सहसा बिजली चमकी और क्षण भर में लुप्त हो गई। बिजली की इस क्षणभंगुर प्रक्रिया को देखकर वे मन में…
दान जीयाज्जिनो जगति नाभिनरेन्द्रसूनु: । श्रेयो नृपश्च कुरुगोत्रगृहप्रदीप:।।याभ्यां बभूवतुरिह व्रतदानतीर्थे, सारक्रमे परमधर्मरथस्य चक्रे।।१।। जिनके द्वारा उत्तम रीति से चलने वाले श्रेष्ठ धर्म रूपी रथ के चाक के समान व्रत और दानरूप दो तीर्थ यहाँ आविभूर्त हुये हैं वे नाभिराज के पुत्र ऋषभदेव तथा कुरुवंश गृह के दीपक के समान राजा श्रेयांसकुमार भी जयवंत होवें।…
लोक का वर्णन सामान्य लोक सर्वज्ञ भगवान से अवलोकित अनन्तानन्त अलोकाकाश के बहुमध्य भाग में ३४३ राजु प्रमाण पुरुषाकार लोकाकाश है। यह लोकाकाश जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन पाँचों द्रव्यों से व्याप्त है। अनादि अनन्त है। इस लोक के तीन भेद हैं- अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक। सम्पूर्ण लोक की ऊँचाई १४ राजुप्रमाण है…