मंगलाचरण द्वादशांग जिनवाणी को ग्रंथरूप में नहीं लिखा जा सकता ”(दिगम्बर जैन परम्परा में भगवान महावीर के बाद ६८३ वर्ष तक ही द्वादशांग श्रुत एवं उसके ज्ञाता आचार्य रहे हैं)” जैन वाङ्गमय द्वादशांगरूप है और दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार आज द्वादशांग उपलब्ध नहीं हैं क्योंकि द्वादशांग लिखे ही नहीं जा सकते, लिपिबद्ध नहीं हो…
मङ्गलाचरण (अध्याय १) गणधरदेव ही द्वादशांगश्रुत के कर्त्ता होते हैं— अर्थकर्ता भगवान महावीर भावतोऽर्थकर्ता निरूप्यते-ज्ञानावरणादि-निश्चय-व्यवहारापाया-तिशयजातानन्तज्ञान-दर्शन-सुख-वीर्य-क्षायिक-सम्यक्त्व-दान-लाभ-भोगोपभोग-निश्चय-व्यवहार-प्राप्त्यतिशयभूत-नव-केवल-लब्धि-परिणत:। एवंविधो महावीरोऽर्थकर्ता। धवला पुस्तक—१ पृ. ६४। अब भाव की अपेक्षा अर्थकर्ता का निरूपण करते हैं- ज्ञानावरणादि घातिया कर्मों के निश्चय-व्यवहाररूप विनाश कारणों की विशेषता से उत्पन्न हुए अनन्तज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य तथा क्षायिक-सम्यक्त्व, दान, लाभ, भोग और उपभोग की…
श्री गौतम गणधर वाणी भगवान महावीरस्वामी के प्रथम गणधर श्रीगौतमस्वामी विरचित ” (संकलन एवं अमृतर्विषणी टीका—गणिनी ज्ञानमती माताजी)” (अध्याय १) मंगलाचरण श्रीमते वर्धमानाय, नमो नमितविद्विषे। यज्ज्ञानान्तर्गतं भूत्वा, त्रैलोक्यं गोष्पदायते।।१।। —पद्यानुवाद—चौबोल छंद— श्रीमन् वर्धमान को प्रणमूँ, जिनने अरि को नमित किया। जिनके पूर्णज्ञान में त्रिभुवन, गौखुर सम दिखलाई दिया।। ऐसे अंतिम तीर्थंकर श्री—महावीर को नित्य नमूं।…
श्री गौतमस्वामी का जीवन परिचय आर्यखंड में एक ब्राह्मण नाम का नगर था। वहाँ एक शांडिल्य नाम का ब्राह्मण रहता था। उसकी भार्या का नाम स्थंडिला था, वह ब्राह्मणी बहुत ही सुन्दर और सर्व गुणों की खान थी। इस दम्पत्ति के बड़े पुत्र के जन्म के समय ही ज्योतिषी ने कहा था कि यह गौतम…
कृतिकर्म विधि (अध्याय २) ‘‘णाणाणं दंसणाणं चरित्ताणं।’’ ज्ञान, दर्शन, चारित्र की कृतिकर्म विधिपूर्वक वन्दना अमृतर्विषणी टीका— यहां श्री गौतमस्वामी ने ज्ञान, दर्शन और चारित्र की भी कृतिकर्म विधिपूर्वक वंदना की है। ये पांच प्रकार के ज्ञान—सम्यग्ज्ञान और दर्शन—औपशमिक, क्षायोपशमिक व क्षायिक ये तीनों प्रकार के सम्यग्दर्शन तथा सामायिक, छदोपस्थापना आदि पांच प्रकार के सम्यक््â चारित्र…
उसहमजियं च वंदे……..। अमृत टीका थोस्सामिस्तव में चौबीस तीर्थंकरों की वंदना की गई है। चौबीस तीर्थंकर का संक्षिप्त परिचय भगवान ऋषभदेव जन्मभूमि—अयोध्या। पिता—महाराज नाभिराय। माता—महारानी मरुदेवी। गर्भ—आषाढ़ कृ. षष्ठी। जन्म एवं तपकल्याणक—चैत्र कृ. नवमी। केवलज्ञान—फाल्गुन कृ. एकादशी मोक्ष—माघ कृ. चतुर्दशी। भगवान अजितनाथ जन्मभूमि—अयोध्या। पिता—महाराजा जितशत्रु। माता—महारानी विजया। गर्भ—ज्येष्ठ कृ. अमावस जन्म—माघ शु. दशमी। तप—माघ शु….
कृतिकर्म विधि (अध्याय २) कृतिकर्म विधि का सार अंगबाह्य के १४ भेदों में से ‘कृतिकर्म’ नाम का अंगबाह्य अनादि निधन है। अत: कृतिकर्मविधि पूर्वक वंदना आदि करना अनादि व्यवस्था है। इसमें णमोकार मंत्र व चत्तारिमंगल अनादि हैं। सामायिक दण्डक में ‘अड्ढाइज्जदीवदोसमुद्देसु पण्णारसकम्मभूमिसु’ जो पद है उस पर प्रकाश डाला है। प्रथम जंबूद्वीप, द्वितीय धातकीखंडद्वीप, तृतीय…
कृतिकर्म विधि (अध्याय २) ‘‘लोयस्सुज्जोययरे………’’ अमृतर्विषणी टीका— लोगुज्जोए धम्मतित्थयरे जिणवरे य अरहंते। कित्तण केवलिमेव य उत्तमबोिंह मम दिसंतु।।५४१।।१ गाथार्थ—लोक में उद्योत करने वाले धर्म तीर्थ के कर्ता अर्हन्त केवली जिनेश्वर प्रशंसा के योग्य हैं। वे मुझे उत्तम बोधि प्रदान करें।।५४१।। आचारवृत्ति—लोक अर्थात् जगत् में उद्योत अर्थात् प्रकाश को करने वाले लोकोद्योतकर कहलाते हैं। उत्तमक्षमादि को…