१०. जिनप्रतिमा निर्माण विधि!
कृतिकर्म विधि (अध्याय २) शिल्प क्रिया के अन्तर्गत वास्तुविद्या में— जिनप्रतिमा निर्माण विधि अमृतर्विषणी टीका— अथ बिम्बं जिनेन्द्रस्य, कर्तव्यं लक्षणान्वितम्। ऋज्वायतसुसंस्थानं, तरुणांगं दिगम्बरम्।।१।। जिनेन्द्र भगवान का प्रतिबिम्ब सरल, लंबा, सुंदर, समचतुरस्र संस्थान तरुण अवस्थाधारी, नग्न जातलिंगधारी सर्व लक्षणसंयुक्त करना योग्य है।।१।। श्रीवत्सभूषितोरस्कं, जानुप्राप्तकराग्रजं। निजांगुलप्रमाणेन, साष्टांगुलशतायुतम्।।२।। श्रीवत्सचिन्ह से भूषित है वक्षस्थल जिनका और गोड़े पर्यंत (घुटने…