पुण्य और धर्म के स्वामी कौन-कौन हैं पूयादिसु वयसहियं पुण्णं हि जिणेहि सासणे भणियं।मोहक्खोह विहीणो परिणामो अप्पणो धम्मो।।८१।। पूजा आदि क्रियाओं में पुण्य होता है। श्रावक सम्यग्दर्शन और अणुव्रतों से सहित जिनपूजा, दान आदि क्रियाओं को करके सातिशय पुण्य संचित कर लेता है ऐसा उपासकाध्ययन नाम के अंग में जिनेन्द्रदेव द्वारा वर्णित है। टीकाकार कहते…
हम जिस देश में रहते हैं उसका नाम है, भारत को ”विश्व गुरु” भी कहा जाता है ।(संपूर्ण दुनिया में )यहां अनेक धर्मों को पालन करने वाले लोग रहते हैं, पर “अहिंसा धर्म” सर्वोपरि है अहिंसा के बल पर ही हमारा देश स्वतंत्र हुआ ।अहिंसा के द्वारा ही पर्यावरण की शुद्धि और संपूर्ण विश्व में शांति की स्थापना हो सकती है।
एडवांस डिप्लोमा जैनोलॉजी (द्वितीय पत्र)
जैन आचार संहिता
इस पुस्तक में परम पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आरिकारत्न श्री चंदना मति माताजी ने श्रावकाचार की प्रारंभिक अवस्था 12 व्रत एवं 11 प्रतिमाओं का सुंदर वचन करते हुए आचार्य उपाध्याय एवं साधु परमेश्वरी के श्रमणाचार्य का भी सटीक विवरण प्रस्तुत किया है साथ ही 12 अनुप्रेक्षा ध्यान सललेखना एवं पंचाचार के वर्णन द्वारा “जैन आचार संहिता” का दिग्दर्शन कराया है
त्रिलोक भास्कर -गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी जिनवाणी के करणानुयोग विभाग में जैन भूगोल की जानकारी आती है । इस विषय में “अधोलोक के अंतर्गत ७ नारको” से जुड़े हुए कुछ प्रश्न प्रस्तुत है । प्रश्नोत्तर प्रस्तुतकर्ता – पंकज जैन शाह- चिंचवड, पुणे, महाराष्ट्र अधोलोक कहाँ है और उसमे किस किसकी रचना है ? १४ राजु…