सप्तपरमस्थान पूजा गीता छंद श्री वीतराग जिनेन्द्र को, प्रणमूँ सदा वर भाव से। श्री सप्तपरमस्थान पूजूँ, प्राप्ति हेतू चाव से।। आह्वान थापन सन्निधापन, भक्ति श्रद्धा से करूँ। सज्जाति से निर्वाण तक, पद सप्त की अर्चा करूँ।।१।। ॐ ह्रीं सप्तपरमस्थानसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं सप्तपरमस्थानसमूह! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: स्थापनं। ॐ ह्रीं…
कैसे बना भारत का मानचित्र ? ( १५ अगस्त- २०१४ के शुभ अवसर पर विशेष ) ‘मानचित्र’ शब्द मात्र से ही बच्चों को भूगोल की कक्षा की याद आ जाती है , किन्तु बच्चों ने शायद ही यह कभी सोचा होगा कि शुरुआत में ये मानचित्र बने कैसे? आज हम यह जानने का प्रयत्न करेंगे…
प्रकृति प्रकरण “मंगलाचरण” पणमिय सिरसा णेमिं गुणरयणविभूसणं महावीरं। सम्मत्तरयणणिलयं पयडिसमुक्कित्तणं वोच्छं।।१।। प्रणम्य शिरसा नेमिं गुणरत्नविभूषणं महावीरम्। सम्यक् त्वरत्ननिलयं प्रकृतिसमुत्कीर्तंनं वक्ष्यामि।।१।। अर्थ—मैं नेमिचंद्र आचार्य, ज्ञानादिगुणरूपी रत्नों के आभूषणों को धारण करने वाले, मोक्षरूपी महालक्ष्मी को देने वाले, सम्यक्त्वरूपी रत्न के स्थान ऐसे श्रीनेमिनाथ तीर्थंकर को मस्तक नवा-प्रणाम कर, ज्ञानावरणादि कर्मों की मूल व उत्तर दोनों प्रकृतियों…
पद्मावती पूजा जगजीवन को शरण, हरण भ्रम तिमिर दिवाकर। गुण अनन्त भगवन्त कंथ, शिवरमणि सुखाकर।। किशनबदन लजिमदन, कोटिशशिसदन विराजै। उरगलच्छन पगधरण, कमठ मद खण्डन साजैं।। अनन्त चतुष्टय लक्षिकर, भूषित पारस देव। त्रिविध नमौं शिरनायके, करूँ पद्मावती सेव।।१।। दोहा आह्वानन बहुविधि करों, इस थल तिष्ठो आय। सत्य मात पद्मावती, दर्शन दीजो धाय।। ॐ ह्रीं श्रीं…
देवी पद्मावती ने जैन न्याय को समृद्ध बनाया प्रस्तुति – आचार्य श्री विद्यानन्दि मुनि महाराज अन्यथानुपपन्नत्वं, यत्र तत्र त्रयेण किम्।नान्याथानुपपन्नत्वं, यत्र तत्र त्रयेण किम्। -(धवला, आचार्य वीरसेन, पु.१३, पृष्ठ २४६) जहाँ अन्यथानुपपत्ति या अविनाभाव है वहाँ त्रैरूप्य मानने से कोई लाभ नहीं, जहाँ अन्यथानुपपत्ति नहीं है वहाँ भी त्रैरूप्य माना व्यर्थ है । यथा-‘पर्वत अग्निवाला…