10.‘‘णिस्संकिय—णिक्क्मखिय…”
‘‘णिस्संकिय—णिक्क्मखिय…”! अमृतर्विषणी टीका‘‘णिस्संकिय—णिक्कंखिय, णिव्विदििंगछी य अमूढदिट्ठी य। अवगूहण ट्ठिदिकरणं, वच्छल्लपहावणा य ते अट्ठ।।’’ अमृतर्विषणी टीका— सम्यग्दृष्टि के आठ अंग (१) नि:शंकित अंग का लक्षण- जिनदेव प्ररूपित तत्त्व यही , है ऐसा ही है अन्य नहीं। निंह अन्य रूप हो सकता है, ऐसा अचलित श्रद्धान सहीत।। ऐसी अवंâप असिधारावत्, सन्मारग में संशय विरहित। रुचि होती जब…