पंचाणुव्रत
अहिंसा व्रत प्रमत्तयोगात् प्राणव्यपरोपणं हिंसा।।१३।। प्रमाद के योग से प्राणों के वियोग करने को हिंसा कहते हैं। इंद्रियों के प्रचार विशेष का निश्चय न करके प्रवृत्ति करने वाला मनुष्य प्रमत्त कहलाता है। जैसे मदिरा पीने वाला मनुष्य मदोन्मत्त होकर कार्य-अकार्य और वाच्य-अवाच्य का विवेक नहीं रखता है उसी तरह प्रमत्त हुआ व्यक्ति जीवस्थान, जीवोत्पत्तिस्थान और…