वंदना (श्री गौतमस्वामीकृत-निषीधिकादण्डक तथा चैत्यभक्ति से) उड्ढमहतिरियलोए सिद्धायदणाणि णमंसामि, सिद्धणिसीहियाओ अट्ठावयपव्वए सम्मेदे उज्जंते चंपाए पावाए मज्झिमाए हत्थिवालियसहाए जावो अण्णाओ काओवि णिसीहियाओ जीवलोयम्मि। ऊर्ध्वलोक, अधोलोक और मध्यलोक में जितने भी सिद्धायतन जिनमंदिर हैं तथा इस मनुष्यलोक में अष्टापद पर्वत, सम्मेदशिखर, ऊर्जयंत-गिरनार, चंपापुरी, पावापुरी आदि जितने भी तीर्थंकर आदि भगवन्तों के जन्म, निर्वाण आदि क्षेत्र हैं, उन…
श्री नेमिनाथ चालीसा -दोहा- नेमिनाथ भगवान ने, लिया जहाँ अवतार। उस शौरीपुर तीर्थ को, वन्दन बारम्बार।।१।। पुन: प्रभू जी ने जहाँ, पाया पद निर्वाण। सिद्धक्षेत्र गिरनार को, नमन करूँ शत बार।।२।। बाइसवें तीर्थेश के, चालीसा का पाठ। पढ़ने से हो जाएगा, तुमको भी वैराग।।३।। विद्यादेवी को नमूँ, वो ही देंगी ज्ञान। बिना ज्ञान वैâसे करूँ,…
अतिशय क्षेत्र त्रिलोकपुर-भगवान नेमिनाथ पूजन रचयित्री-प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी भगवान नेमिनाथ पूजन-विधान श्री नेमिनाथ जिनराज! नमोऽस्तु तुभ्यं। श्री नेमिनाथ मुनिनाथ! नमोऽस्तु तुभ्यं।। अतिशायिक्षेत्रसुत्रिलोकपुरस्य नाथ:। श्री नेमिनाथ जिनसूर्य! नमोऽस्तु तुभ्यं।।१।। मंगलं भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी। मंगलं कुंदकुंदाद्यो, जैनधर्मोऽस्तु मंगलं।।२।। ।।अथ जिनपूजा प्रतिज्ञापनाय पुष्पांजलिं क्षिपेत्।। श्री नेमिनाथ जिनराज! नमोऽस्तु तुभ्यं। श्री नेमिनाथ मुनिनाथ! नमोऽस्तु तुभ्यं।।…
न्यायालयों के निर्णय जैनधर्म बहुत प्राचीन धर्म हैं, इसके कुछ प्रमाण सन् १९२७- मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा एयर १९२७ मद्रास २२८ मुकदमे के निर्णय में जैनधर्म को स्वतंत्र, प्राचीन व ईसा से हजारों वर्ष पूर्व का माना। सन् १९३९- मुम्बई उच्च न्यायालय में एयर १९३९ मुम्बई ३७७ मुकदमे के निर्णय में कहा कि जैनधर्म वेदों…