कैलाश पर्वत : जीवन्त दर्शन विक्रम संवत् १८०६ में ब्र. लामचीदासजी ने भगवान् ऋषभदेव की निर्वाणभूमि एवं भरत चक्रवती द्वारा बनवाये ७२ जिनालयों के दर्शन करने का दृढ़ संकल्प किया। अपनी संकल्प शक्ति के सहारे चीन, तिब्बत आदि बहुत से देशों का भ्रमण करते हुए एक ऐसे स्थान पर जा पहुँचे जहाँ से अब आगे…
नयनाभिराम: सिद्धक्षेत्र नैनागिरि (रेशंदीगिरि-ऋषीन्द्रगिरि) जिला छतरपुर (मध्यप्रदेश) यह सिद्धक्षेत्र मध्यप्रदेश के १२ सिद्धक्षेत्रों में से शाश्वत प्राचीनतम सिद्धक्षेत्र है। बाईसवें तीर्थंकर नेमिनाथ के काल में मोक्ष पधारे वरदत्तादि पंच मुनिराजों की निर्वाण भूमि, तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का लगभग २९०० वर्ष पूर्व समवसरण यहाँ आया था। खुदाई करने पर १३ जिन प्रतिमाओं से युक्त मन्दिर…
जैन परम्परा में राष्ट्रधर्म जैन परम्परा में जैन श्रमण तीन संध्याओं में आत्मध्यान के समय ” सत्त्वेषु मैत्री …. श्लोक के माध्यम से है भगवन्! मेरी आत्मा सदा सभी प्राणि भाव को धारण करे।” राष्ट्रभावना भाते हैं। दिगम्बराचार्य पूज्यपाद स्वामी ने शांतिभक्ति में क्षेमं सर्व प्रजानां … श्लोक में स्पष्टतया राष्ट्र की संवृद्धि एवं सुख…
दिगम्बर जैन साधु का संयमोपकरण मयूर पिच्छिका दिगम्बर मुनि के पास संयम उपकरण के रूप में पिच्छिका होती है। यह जिन मुद्रा एवं करुणा का प्रतीक है। पिच्छिका और कमण्डलु मुनि के स्वावलम्बन के दो हाथ हैं। इसके बिना अहिंसा महाव्रत, आदान निक्षेपण समिति तथा प्रतिष्ठापना समिति नहीं पल सकती। प्रतिलेखन शुद्धि के लिए…
दिगम्बर जैन साधु का शौचोपकरण कमण्डलु कमण्डलु भारतीय संस्कृति का सारोपदेष्टा है। उसका आगमनमार्ग बड़ा और निर्गमनमार्ग छोटा है। अधिक ग्रहण करना और अल्प व्यय करना अर्थशास्त्र का ही नहीं, सम्पूर्ण लोकशास्त्र का विषय है। संयम का पाठ कमण्डलु से सीखना चाहिए। कमण्डलु में भरे हुए जल की प्रत्येक बूँद के समुचित उपयोग हेतु…
जैनधर्म में ईश्वर ईश्वर, परमात्मा, स्वयंभू, ब्रह्मा, शिव, बुद्ध, विष्णु, परमेश्वर, सिद्ध, मुक्त आदि सभी नाम कर्म मल से अलिप्त, शुद्धत्व को प्राप्त आत्मा के ही हैं। संसार की प्रत्येक आत्मा में ईश्वर बनने की शक्ति है, यदि वह समीचीन पुरुषार्थ करे तो वह भी महावीर, राम, अर्जुन आदि के समान भगवान् बन सकता है।…