28.जिनवाणी स्तुति
जिनवाणी स्तुति वीर हिमाचल तैं निकरी, गुरू गौतम के मुख—कुण्ड ढरी है। मोह—महाचल भेद चली, जग की जड़तातप दूर करी है।। ज्ञान पयोनिधिमांहि रली, बहुभंग तरंगनिसों उछरी है। ता शुचि शारद गंगनदी प्रति, मैं अंजुलि कर शीश धरी है।। या जगमन्दिर में अनिवार अज्ञान, अन्धेर छयो अति भारी। श्री जिनकी धुनि दीप—शिखासम, जो निंह होत…