पुरु!
[[श्रेणी:शब्दकोष]][[श्रेणी:पुत्र]] पुरु – Puru. The best, A city situated in the north of Vijayardh mountain. श्रेष्ठ, विजयार्थ की उत्तर श्रेणी का एक नगर “
[[श्रेणी:शब्दकोष]][[श्रेणी:पुत्र]] पुरु – Puru. The best, A city situated in the north of Vijayardh mountain. श्रेष्ठ, विजयार्थ की उत्तर श्रेणी का एक नगर “
धर्म की महिमा का तथा धर्म के उपदेश स्रग्धरा इत्यादिर्धर्म एष क्षितिपसुरसुखानघ्र्यमाणिक्यकोष: पायो दु:खनलानां परमपदलसत्सौधसोपानराजि:। एतन्माहात्म्यमीश: कथयतिजगतांकेवलीसाध्वेधीति सर्वस्म्न्विाङ्येथस्मरति परमहोमादृशस्तस्यनाम।। अर्थ — ग्रन्थकार कहते हैं कि पूर्व में जो दया आदिक पांच प्रकार का धर्म कहा है वह धर्म बड़े—२ चक्रवर्ती आदिक राजाओं के तथा इंद्र अहमिन्द्र आदि के सुख का देने वाला है तथा समस्त…
[[श्रेणी:शब्दकोष]][[श्रेणी:पुत्र]] अन्वय Logical connection with lineage (ancestry). अपनी जाति को न छोड़ते हुए उसी रूप में अवस्थित रहना ।
[[श्रेणी:शब्दकोष]][[श्रेणी:पुत्र]] वंश –Vansh.: A dynasty ,a lineage ,a family line . ऐतिहासिक –पौराणिक कुल परम्परा “
सौंदर्य का मूल्यांकन मैं मोटा हूं, मैं पतला हूं, मैं सुंदर नहीं हूं, मैं बीमार हूं, मैं बोल नहीं पाता… इसी तरह के अनगिनत विचारों में हम हर रोज उलझे रहते हैं और inferiority complex से ग्रसित रहते हैं। ये thoughts हमारे जीवन केें गतिरोधक बन जाते हैं। हम क्यों अपने looks को इतनी importance…
सफल टीम कैसे बनाए?? दोस्तों, हम सभ जानते है, सफलता के लिए TEAMWORK बहुत जरुरी है लेकिन सफल TEAM तैयार करना हर किसी के बस की बात नहीं है ” सफल टीम तैयार करना एक कला है | लेकिन पहले यह समझना जरुरी है की यह TEAM है क्या? Team एक उत्साहित लोगो का समूह…
जैनधर्म और तीर्थंकर परम्परा द्वारा- पं. शिवचरणलाल जैन , मैनपुरी ( उ. प्र. ) तीर्थंकरों द्वारा प्रतिपादित जैनधर्म अनादिनिधन धर्म है। संसार में अनंतानंत जीव जन्म मरण के दुखों से सन्तप्त हैं। भव भ्रमण का मूल कारण अनादिकालीन कर्मबन्धन हैै। यह कर्मबन्धन मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचरित्र के कारण संभूत है। जैन मान्यतानुसार जीव, पुदगल, धर्म,…
आचार्य पुष्पदंत -भूतबली विरचित षट्खंडागम ग्रंथ की संस्कृत भाषा में “सिद्धांत चिंतामणि टीका” गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी द्वारा की गई है ।इस नवमी पुस्तक में षट्खंडागम के चतुर्थ खंड वेदनाखंड के अंतर्गत कृति अनुयोगद्वार का वर्णन है, साथ ही कृति के सात भेदों को भी बताया गया है और इसमें गौतम स्वामी द्वारा रचित गणधरवलय के 44 मंत्र एवं भक्तामर स्तोत्र के 48 ऋध्दि मंत्रों का भी समावेश किया गया है एवं साधु के 28 कृतिकर्मों का बहुत ही सुंदर वर्णन इसमें है ।
सिद्धांत ग्रंथ का स्वाध्याय कब करना और कब नहीं करना और उनसे होने वाले लाभ और हानि के बारे में बहुत महत्वपूर्ण वर्णन किया गया है। इस पुस्तक में कुल 76 सूत्र है ।इस ग्रंथ का स्वाध्याय हम सभी के सम्यग्ज्ञान की वृद्धि करें ,यही मंगल भावना है।