साहित्य रचना में जिस पकार रस , अलंकार , व्याकरण आदि आवश्यक अंग होते हैं उसी प्रकार छंद शास्त्र का भी महत्वपूर्ण स्थान है |जैसे कोई स्त्री सुन्दर वस्त्रालंकारों से सुसज्जित होते हुए भी बेडौल है तो उसे अलंकार शोभित नहीं कर सकते हैं उसी प्रकार छंद के बिना साहित्य रचना हमें अपनी ओर आकर्षित नहीं कर सकती अतः छंदशास्त्र का ज्ञान अत्यावश्यक है | कविवर वृन्दावन रचित इस पुस्तक में १०० प्रकार के छंदों का वर्णन है , इसमें छंद के लक्षण में ही छंद के नाम सन्निहित है |
जैसे एक माला में बहुत से फूल होते हैं उसी प्रकार इस पुस्तक में वस्तु के अनेक नाम बतलाने वाले २०० श्लोक हैं अतः इसे नाममाला कहा गया है | इसकी रचना महाकवि धनञ्जय ने की है अतएव इसका धनञ्जय नाममाला नाम सार्थक है | किसी भी ग्रन्थ रचना में एक ही शब्द को बार बार लेने से उसमें वह लालित्य नहीं आ पाता और अगर हम एक शब्द के अलग-अलग नाम देवें तो उस रचना में चार चाँद लग जाते हैं इसलिए ग्रन्थ रचना की सुंदरता के लिए इस पुस्तक का ज्ञान होना अति आवश्यक है |