अकृत्रिम जिनमंदिर!
अकृत्रिम जिनालय अर्थात् अनादिनिधन, शाश्वत जिनमंदिर जिन्हें किसी ने नहीं बनाया है, जिनका न तो आदि है न अंत, जो सदैव विद्यमान रहते हैं
अकृत्रिम जिनालय अर्थात् अनादिनिधन, शाश्वत जिनमंदिर जिन्हें किसी ने नहीं बनाया है, जिनका न तो आदि है न अंत, जो सदैव विद्यमान रहते हैं
Antiquity Of Jainism JAINISM IS ONE OF THE MOST ANCIENT RELIGIONS OF THE INDIAN LAND. IT IS SUPPOSED TO BE THE ETERNAL RELIGION, IN WHICH ANY SOUL CAN BECOME GOD. IN THE CENTRE OF THIS UNIVERSE THE FIRST ISLAND IS JAMBUDWEEP.IN THIS THERE ARE SHATKAAL CHANGES IN THE BHARAT SHETRA AND THE AIRAWAT KSHETRA THE…
टोंक – सम्मेदशिखर पर्वत के जिन स्थानों से भगवन्तों ने मोक्षधाम को प्राप्त किया , उन्हें जैन ग्रंथों में टोंक संज्ञा प्रदान की है । सम्मेदशिखर के पर्वत पर ऐसी २४ टोंक हैं । जहाँ भक्तगण श्रद्धापूर्वक जाकर प्रभु की वंदना करते हैं ।
शाश्वत – जो सदाकाल विद्यमान रहता है उसे शाश्वत कहते हैं । जैसे जैनधर्म शाश्वत है ,वैसे ही अयोध्या एवं सम्मेदशिखर तीर्थ शाश्वत माने जाते हैं ।
सम्मेदशिखरजी – यह शाश्वत सिद्धक्षेत्र वर्तमान में झारखण्ड प्रदेश में स्थित है ।इस तीर्थ की वंदना करने से नरक- पशु गति नहीं मिलती है , ऐसा जैन शास्त्रों में कथन आता है ।
अमृतसिद्धि योग- रविवार को हस्त नक्षत्र , सोमवार को मृगशिर नक्षत्र , मंगलवार को अश्विनी नक्षत्र , बुधवार को अनुराधा नक्षत्र ,गुरुवार को पुष्य नक्षत्र , शुक्रवार को रेवती नक्षत्र , शनिवार को रोहिणी नक्षत्र से सम्बन्ध होने पर अमृतसिद्धि योग बनता है ।
गुरु पुख्य योग – गुरुवार को पुष्य नक्षत्र आने पर गुरुपुष्य योग बनता है ।विशेष – ध्यान रहे कि गुरुपुष्यामृत योग के समय विवाह , मंगलवार वाले अमृतसिद्धि योग के समय नये घर में प्रवेश तथा शनिवार वाले अमृतसिद्धि योग के समय यात्रा नहीं करनी चाहिए ।
जैन साधू एवं साध्वियाँ – भारत की धरती पर सदा- सदा से साधू- साध्वियों का जन्म होता रहा है । उनकी त्याग- तपस्या से देश का मस्तक सदैव गौरव से ऊँचा रहा है । जैन रामायण पद्मपुराण में आचार्य श्री रविषेण स्वामी ने कहा है – यस्य देशं समाश्रित्य, साधवः कुर्वते तपः । षष्ठमंशं नृपस्तस्य,लभते…