चने में छिपा है सेहत और सुन्दरता का राज /> left “30px”]] /> right “30px”]] आयुर्वेद में यह कहा जाता है कि अगर आप फुर्तीले बने रहना चाहते हैं तो चने का सेवन नियमित रूप से करना शुरू कर दीजिये। बस एक मुट्ठी चना से आप स्वस्थ और ताकतवर बने रह सकते हैं। चना बहुत…
स्वास्थ्य का सजग प्रहरी है चोकर /> left “50px”]] /> right “50px”]] अधिकतर गृहिणियां आटे को छानकर उसका चोकर निकाल कर अलग रख देती हैं जिससे रोटी मुलायम और देखने में सुन्दर लगे। सुन्दरता की दृष्टि से बनायी गई गेहूँ की चोकर रहित रोटी से सिर्फ पेट भरा जा सकता है। हम इस बात से…
धर्म प्रभावना की टीस कबंधु नगर के तालाब से पीने के लिए जल छान रहा था , उसे एक राज कर्मचारी ने देख लिया और पकड़कर राजा के पास ले गया। यह सब दृश्य छोटा बालक जिनसेन देख रहा था, उसने अपनी माता से पूछा माताजी ये लोग उस आदमी को क्यों पकड़ कर ले…
सबसे अधिक बोला जाने वाला शब्द ‘मैं’ मैं कितनी बार समझा चुकी हूँ तू कम बोला कर, पर तुझे मेरी बात समझ में नहीं आती’ एक माँ अपनी नन्ही सी बिटियाँ को डाँट रही थी। देख ‘मैं’ फिर से तुझे कह रही हूँ ज्यादा मत बोला कर। ‘मैं’ ज्यादा बोलती हूँ ? अपनी बाल सुलभ…
गलती न करें दांतों की देखभाल में /> left “60px”]] /> right “60px”]] अक्सर हम दांतों की सुरक्षा को विशेष महत्व नहीं देते। जब कभी थोड़ी तकलीफ होती है तो घरेलू इलाज अपनाकर काम चला लेते हैं जबकि हमारे फिट शरीर की कुंजी हैं फिट दांत। जो भी हम खाते हैं, इन्हीं दांतों की सहायता…
महाभारत का युद्ध एवं पाण्डवों की लक्ष्यसिद्धि किसी समय एक विद्वान् राजगृह नगर के राजदरबार में उत्तम रत्नों की भेंट लेकर जरासंध अर्धचक्री के पास गया और नमस्कार किया, तब राजा जरासंध ने पूछा—‘‘तुम कहाँ से आए हो और यह रत्न कहाँ से लाए हो’’ ? उत्तर में उसने कहा राजन् ! ‘द्वारिका में नेमिप्रभु…
धर्मचक्र विधान परमपूज्य चारित्रश्रमणी आर्यिका श्री अभयमती माताजी द्वारा रचित कतिपय विधानों की शृँखला में ‘‘धर्मचक्र विधान’’ एक सुन्दर कृति है। तीर्थंकर भगवान के केवलज्ञान उत्पन्न होने के पश्चात् कुबेर द्वारा समवसरण की रचना होती है, उस समवसरण में चारों दिशाओं में सर्वाण्हयक्ष अपने मस्तक पर धर्मचक्र को धारण करते हैं तथा तीर्थंकर के श्रीविहार…
जिनेन्द्र भक्ति संकलनकर्त्री- गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी हिन्दी पद्यानुवादकर्त्री- आर्यिका चंदनामती तीर्थंकर स्तुति थोस्सामि हं जिणवरे, तित्थयरे केवली अणंतजिणे। णरपवरलोयमहिए, विहुयरयमले महप्पण्णे।। (चौबीस तीर्थंकर भक्ति गाथा-१) शंभु छन्द— श्री जिनवर तीर्थंकर केवलज्ञानी, अर्हत्परमात्मा हैं। जो हैं अनन्तजिन मनुजलोक में, पूज्य परम शुद्धात्मा हैं।। निज कर्म मलों को धो करके, जो महाप्राज्ञ कहलाते हैं। ऐसे जिनवर…
जैन चौका चरणानुयोग की प्रयोगशाला है जैन धर्म में श्रावक उसे कहा जाता है जो श्रद्धावान हो विवेकवान व क्रियावान हो।भगवान महावीर से गौतम गणधर ने पूछा था— हे भगवान हमें किस प्रकार चलना चाहिए किस प्रकार बैठना चाहिए, किस प्रकार भोजन करना चाहिए, हम किस प्रकार पाप बंध से बच सकते हैं। भगवान ने…