आवागमन :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] == आवागमन : == राग दोस मोह के पासे, आप वणाए हितधर। जैसा दाव परे पासे का, सारि चलावे खिलकर।। —आनंदघन ग्रंथावली, पद : ५६ आत्मा ने स्वयं प्रसन्न होकर संसार रूप चौपड़ को खेलने के लिए राग—द्वेष और मोह रूप पासे बना लिए हैं। जैसे पासा आता है, उसी के अनुसार…