गंगाकूट पर भगवान की प्रतिमाएँ पउमस्स सिहरिजस्स य तिण्णेव महाणदी समुद्दिट्ठा। अवसेसाण दहाणं सरियाओ होेंति दो दो दु।।१४६।। गंगा पउमदहादो णिस्सरिदूणं तु तोरणदुवारे। पुव्वाभिमुहेण गया पंचेव य जोयणसदाणि।।१४७।। गंगावूडमपत्ता जोयणअद्धेण दक्खिणे वलिया। पंचेव जोयणसया तेवीसा अद्धकोसधिया।।१४८।। हिमवंतअंतमणिमयवरवूडमुहम्मि वसहरूवम्मि। पविसित्तु पडइ धारा सयजोयणतुंगससिधवला।।१४९।। छज्जोयण सक्कोसा पणालिया वित्थडा मुणेयव्वा। आयामेण य णेया वे कोसा तेत्तिया बहला।।१५०।। सिंगमुहकण्णजीहाणयणाभूयादिएहि…
जैनधर्म एवं पर्यावरण संरक्षणप्रशनोत्तरी जैनदर्शन में पर्यावरण संरक्षण से संबन्धित विषयों पर जितना अधिक विश्लेषण किया गया है उनी सूक्ष्मता से अन्य दर्शनों में दृष्टिगोचर नहीं होता है। जैन साधुओं एवं श्रावकों में पर्यावरण के विभिन्न अवयवों के समुचित उपयोग एवं संरक्षण की भावना एवं कार्यशैली निश्चित रूप से पर्यावरण के संरक्षण के प्रति पराकाष्ठा…
बृहद्रव्यसंग्रह में वर्णित अशुभध्यान प्रारम्भ से ही विश्व में आध्यात्मिक उन्नति की धारा निरन्तर प्रवहमान रही है। जिसमें भारत की भी विविध संस्कृतियों, परम्पराओं, आचारों और विचारों का अद्भुत समन्वय दृष्टिगत हुआ है। इसी कारण से भारत को जगत् का आध्यात्मिक गुरु माना गया है। उसमें भी विभिन्न मतों, आचार-विचार में स्वविशिष्टता के कारण से…
गुणस्थानसार इ्न बीस प्ररूपणाओं द्वारा अथवा इन बीस प्रकरणों का आश्रय लेकर यहाँ जीवद्रव्य का प्ररूपण किया जाता है। ‘‘जीवट्ठाण’’ नामक सिद्धांतशास्त्र में अशुद्ध जीव के १४ गुणस्थान, १४ मार्गणा और १४ जीवसमास स्थानों का जो वर्णन है वही इसका आधार है। संक्षेप रुचि वाले शिष्यों की अपेक्षा से इन बीस प्ररूपणाओं का गुणस्थान और…
अपुत्रीन को तू भले पुत्र दीने (काव्य सत्ताइस से सम्बन्धित कथा) बिना फल का वृक्ष स्वयं को सन्तति विहीन समझकर मुरझा जाता है।कुमुदिनी रहित सरोवर उत्तुंग लहरों के स्थान पर मंद प्रवाह से बहता है।वही हाल राजा हरिशचन्द्र और उनकी धर्मपत्नी चन्द्रमती का था सन्तान का अभाव उन्हें चौबीसों घंटे संतप्त किये रहता था। कई…
कारुण्य व्रत(षट् क्रिया व्रत) आषाढ़ शु. १३ को एक भुक्ति-एकाशन करके चतुर्दशी को उपवास करें। जिनमंदिर में श्री ऋषभदेव का महाभिषेक-पंचामृताभिषेक करके पूजा करें। पूजा में निम्न मंत्रों को पढ़ें- मंडल पर छह कोठे बनावें। उन पर पान रखें, उन पर यह पूजा करें। पृथक्-पृथक् छह पान पर यह पूजा छह बार करें। ॐ ह्रीं…