14. दर्शनमार्गणा
दर्शनमार्गणा (चौदहवाँ अधिकार) दर्शन का स्वरूप जं सामण्णं गहणं, भावाणं णेव कट्टुमायारं। अविसेसदूण अट्ठे, दंसणमिदि भण्णदे समये।।१२८।। यत् सामान्यं ग्रहणं भावनां नैव कृत्वाकारम्। अविशेष्यार्थान् दर्शनमिति भण्यते समये।।१२८।। अर्थ—सामान्य—विशेषात्मक पदार्थ के विशेष अंश को ग्रहण न करके केवल सामान्य अंश का जो निर्विकल्परूप से ग्रहण होता है उसको परमागम में दर्शन कहते हैं। भावार्थ —यद्यपि वस्तु…