दशलक्षण भक्ति हिंदी
दशलक्षण भक्ति पद्यानुवाद शंभु छंद योगीश्वर उत्तमक्षमा सुगुणमय, त्रिभुवन के इक बांधव हैं। वे क्रोध कषाय नाशकर अपने, शांतभाव में तन्मय हैं।। निज आत्मा से उत्पन्न परम, पीयूष पियें संतृप्त रहें। उन योगी को वर क्षमाधर्म को, हृदय कमल में धारूँ मैं।।१।। मृदु का जो भाव वही मार्दव, यह उत्तम धर्म जगत में है। जो...