जैन वाङ्मय में अष्टमंगल-एक विवेचन १. प्ररोचना भारतीय परम्परा मंगल और मांगलिक वस्तुओं के सृजन, सम्वद्र्धन और संपादन में सन्यास है। ऐहिक जीवन में पूर्ण मंगल की संस्थापना कर, उसको भोगकर पारलौकिक मंगल में पूर्ण प्रतिष्ठित हो जाना प्रत्येक भारतीय का संकल्प होता है। ‘‘जीवेम शरद: शतम्’’ की रमणीय भावना से विभूषित ऋषि-परम्परा वहां जाना चाहती…
णमोकार मंत्र का माहात्म्य(स्तोत्र) (श्री उमास्वामि आचार्यविरचित) हिन्दी पद्यानुवाद-आर्यिका चन्दनामती विष्लिष्यन् घनकर्मराशिमशनि: संसारभूमीभृत:। स्वर्निर्वाणपुरप्रवेशगमने, नि:प्रत्यवाय: सतां।। मोहांधावटसंकटे निपततां, हस्तावलम्बोऽहतां। पायान्न: स चराचरस्य जगत: संजीवनं मन्त्रराट्।।१।। (१) णमोकार यह मंत्रराज, घनकर्म समूह हटाता है । यह संसार महापर्वत, भेदन में वज्र कहाता है ।। सत्पुरुषों को स्वर्ग मोक्ष दे, संकट दूर भगाता है । मोह महान्धकूप…
धार्मिक पहेली १. मंत्रों में जो महामंत्र है, सुख पाने का एक यंत्र है। उसी मंत्र का नाम बताओ, शुद्ध बोलकर हमें सुनाओ।।उत्तर — णमोकार महामंत्र । जो इस प्रकार है णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं, णमो उवज्झायाणां, णमो लोए सव्व साहूणं। २. अर्हत् सिद्धाचार्य उपाध्याय, साधु जी को हम नित ध्याँय।सहीं मूलगुण सबके…
ऐतिहासिक आर्यिकाएँ इस युग में चतुर्थ काल प्रारंभ होने के पहले ही भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान होने के बाद ही उनके ही पुत्र वृषभसेन, जो कि पुरिमताल नगर के राजा थे, वे प्रभु से मुनि दीक्षा लेकर भगवान के प्रथम गणधर हो गये तथा भगवान की ही पुत्रीआदिपुराण, पृ. ५९२। ब्राह्मी, जो कि भरत चक्री…
दीक्षा प्रयोगविधि अथ वृहद्दीक्षायां लोचस्वीकारक्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजावन्दनास्तवसमेतं सिद्धभक्तिकायोत्सर्गं करोम्यहम्। (णमोकार मंत्र, चत्तारि मंगल, अड्ढाइज्जदीव’ आदि सामायिक दण्डक पृ. १४ से पढ़कर ९ बार महामंत्र जपकर ‘थोस्सामि’ स्तव पढ़कर पृ. २८ से सिद्धभक्ति पढ़ें) पुन:- अथ वृहद्दीक्षायां लोचस्वीकारक्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्मक्षयार्थं भावपूजावन्दनास्तवसमेतं योगिभक्ति कायोत्सर्गं करोम्यहम्। (पूर्ववत् सामायिक दण्डक, ९ बार महामंत्र जाप्य व थोस्सामि स्तव पढ़कर…
जंगल में मंगल (काव्य एक व दो से सम्बन्धित कथा) कितना ही कुशल कलाकार क्यों न हो, एक ही बार की असावधानी से अपनी प्रतिष्ठा से हाथ धो बैठता है; कितना ही कुशल लक्ष्य-वेधक क्यों न हो, ध्यान बटते ही निशाना चूक जाता है।… हाँ! तो सुदत्त भी एक कलाकार था-चौर्य-कला में सिद्धहस्त! किन्तु…संभवतः अनहोनी…
चार गजदंत के कूटों के नाम अथ गजदन्ताख्यानां वक्षाराणामितरवक्षाराणां च कूटसंख्यातान्नामादिवं गाथाष्टकेनाह— णवसत्तय णवसत्तय ईसाणदिसा दुदंतसेलाणं। वक्खाराणं चउचउवूडं तण्णाममणुकमसो१।।७३७।। नव सप्त च नव सप्त च ईशानदिशः द्विदन्तशैलानां। वक्षाराणां चत्वारि चत्वारि कूटनि तन्नामानि अनुक्रमशः।।७३७।। णव। ईशानदिशः आरभ्य गजदन्तशैलानां क्रमेण वूकूटख्या नव ९ सप्त ७ नव सप्त च स्युः। इतरवक्षाराणां चत्वारि ४ चत्वारि वूकूटनि तेषां नामान्यनुक्रमशः कथयति।।७३७।।…