श्री महावीर जिनपूजा अथ स्थापना मत्तगयंद छंद श्रीमत वीर हरे भवपीर, भरें सुखसीर अनाकुलताई। केहरि अंक अरीकरदंक, नये हरि पंकति मौलि सुआई।। मैं तुमको इत थापत हौं प्रभु, भक्तिसमेत हिये हरषाई। हे करूणा-धन-धारक देव, इहाँ अब तिष्ठहु शीघ्रहि आई।। ॐ ह्रीं श्रीवद्र्धमानजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीवद्र्धमानजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः…