05. रामचंद्र का वनवास
रामचंद्र का वनवास (२४)हे वत्स ! तुम्हारे संग मैंने, देखो कैसा अन्याय किया। तुम सा अग्रज सुत पाकर भी, छोटे सुत को यह राज्य दिया।।झुक करके पितु के चरणों में, श्री राम निवेदन करते हैं।है पुत्र वही जो कुलरक्षा के, लिए प्राण भी तजते हैं।। (२५)इसलिए शोक को तज करके, हे तात ! मुझे आज्ञा…