श्रुतावतार मूल रचयिता – श्री इन्द्रनन्दि आचार्य हिन्दी अनुवादकर्त्री- गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी मंगलाचरण सर्वनाकीन्द्रवंदित कल्याणपरंपरं देवं। प्रणिपत्य वद्र्धमानं श्रुतस्य वक्ष्येऽहमवतारम् ।।१।। यद्यप्यनाद्यनिधनं श्रुतं तथाप्यत्र तन्निभेदेन मया। कालाश्रयेण तस्योत्पत्तिविनाशौ प्रवक्ष्येते।।२।। भरतेऽस्मिन्नवसर्पिण्युत्सर्पिण्याह्व्यौ प्रवर्तेते। कालौ सदापि जीवोत्सेधायुह्र्रासवृद्धिकरौ।।३।। एवैकस्य पृथग्दशकोटीकोट्य: प्रमाणमुद्दिष्टं। वाध्र्युपमानावेतौ समाश्रितौ भवति कल्प इति।।४।। अथ श्रुतावतारकथा लिख्यते सभी स्वर्ग आदि के इन्द्रों से वंदित सर्वकल्याण की…
भ्रान्तियों का निराकरण क्या बाहुबली भगवान के शल्य थी प्रश्न – क्या बाहुबली भगवान के शल्य थी ? उत्तर – शल्य नहीं थी, क्योंकि शल्य सहित मुनि के मन:पर्ययज्ञान व ऋद्धियाँ नहीं हो सकती हैं। बाहुबली स्वामी ध्यान में लीन थे, वे भावलिंगी मुनि थे, आदिपुराण भाग-२, पृ. २१३ से लेकर पृ.२१७ तक उनके ऋद्धियों…
उत्तम तप धर्म श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में तप धर्म के विषय में कहा है णर—भव पावेप्पिणु तच्च मुणेप्पिणु खंचिवि पंचिंदिय समणु।णिव्वेउ पंमडि वि संगइ छंडि वि तउ किज्जइ जाएवि वणु।।तं तउ जिंह परगहु छंडिज्जइ, तं तउ जिंह मयणु जि खंडिज्जइ।तं तउ जिंह णग्गत्तणु दीसइ, तं तउ जिंह गिरिवंदरि णिबसइ।।तं तउ जिंह…
उत्तम संयम धर्म श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में संयम धर्म के विषय में कहा है संजमु जणि दुल्लहु तं पाविल्लहु जो छंडइ पुणु मूढमइ।सो भमइ भवावलि जर—मरणावलि किं पावेसइ पुणु सुगइ।।संजमु पंचदिय—दंडणेण, संजमु जि कसाय—विहंडणेण।संजमु दुद्धर—तव धारणेण, संजमु रस—चाय—वियारणेण।।संजमु उपवास—वजंभणेण, संजमु मण—पसरहं थंभणेण।संजमु गुरुकाय—किलेसणेण, संजमु परिगह—गह चायणेण।।संजमु तस थावर—रक्खणेण, संजमु सत्तत्थ—परिक्खणेण।संजमु तणु—जोय णियंतणेण,…
उत्तम आर्जव धर्म श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में आर्जव धर्म के विषय में कहा है धम्महु वर—लक्खणु अज्जउ थिर—मणु दुरिय—वहंडणु सुह—जणणु।तं इत्थ जि किज्जइ तं पालिज्जइ, तं णि सुणिज्जइ खय—जणणु।।जारिसु णिजय—चित्ति चितिज्जइ, तारिसु अण्णहं पुजु भासिज्जइ।किज्जइ पुणु तारिसु सुह—संचणु, तं अज्जउ गुण मुणहु अवंचणु।।माया—सल्लु मणहु णिस्सारहु, अज्ज धम्मु पवित्तु वियारहु।वउ तउ मायावियहु णिरत्थउ,…
भजन मैं तुलसी तेरे आँगन की…. मैं सेवक तेरे चरणन का। पूरा करो माँ-पूरा करो माँ लक्ष्य तरणन का।।मैं सेवक…….. जो भी तेरे दर पे आता खाली ना वो लौट के जाता पाता लाभ तेरे दर्शन का मैं सेवक तेरे चरणन का।। जैन अजैन माँ जो भी आए मनवांछित फल वो पा जाए क्षय चाहे…
भजन तर्ज-झूठ बोले कौआ काटे…… अम्मा रूठे पापा रूठे, रूठे भाई और बहना। मैं दीक्षा लेने जाऊँगी तुम देखते रहना।। माँ – मानो बेटी बात हमारी आयु अभी तोड़ी है। इतनी आयु में क्यों बिटिया त्याग से ममता जोड़ी है। दीक्षा में है कष्ट घनेरे तुमरे बस की न सहना।। मैं दीक्षा लेने जाऊँगी…………. माताजी…
भजन रत्नमती माताजी को हम नित प्रति शीश झुकाते हैं। उनके मंगल आदर्शों का किंचित् दर्श कराते हैं।।टेक.।। नारी शील कहा जग में, आभूषण अवनीतल में। सर्व गुणों की छाया है, कैसी अनुपम माया है।। इसीलिए इस नारी ने, तीर्थंकर से पुत्र जने। भारत जिससे धन्य हुआ, सर्वकला सम्पन्न हुआ।। यहीं वृषभ तीर्थंकर ने, आदिब्रह्म…
भजन तीरथ करने चली मोहिनी, शान्ति मार्ग अपनाने को। धर्मसागराचार्य संघ में, ज्ञानमती श्री पाने को।। एक बार जब गई मोहिनी, साधु चतुर्विध संघ जहाँ। वह अजमेर धर्म की नगरी, दिखता चौथा काल वहाँ।। तीर्थवंदना शुरू वहीं से, हुई मुक्तिपथ पाने को। धर्मसागराचार्य संघ में, ज्ञानमती श्री पाने को।। धन्य तिथि मगसिर बदि तृतिया, वरदहस्त…