भगवान श्री मल्लिनाथ जिनपूजा अथ स्थापना नरेन्द्र छंद तीर्थंकर श्रीमल्लिनाथ ने, निज पद प्राप्त किया है। काम मोह यम मल्ल जीतकर, सार्थक नाम किया है।। कर्म मल्ल विजिगीषु मुनीश्वर, प्रभु को मन में ध्याते। हम पूजें आह्वानन करके, सब दु:ख दोष नशाते।।१।। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीमल्लिनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ…
२८ नक्षत्रों के नाम कृत्तिका , रोहिणी , मृगशीर्षा , आर्द्रा , पुनर्वसू , पुष्य , आश्लेषा , मघा , पूर्वाफाल्गुनी , उत्तराफाल्गुनी , हस्त , चित्रा , स्वाति , विशाखा , अनुराधा , ज्येष्ठा , मूल , पूर्वाषाढ़ा , उत्तराषाढ़ा, अभिजित , श्रवण , घनिष्ठा , शतभिषक , पूर्वाभाद्रपदा , उत्तराभाद्रपदा , रेवती ,…
शांतिनाथ चरित्र विश्व विरासत में शामिल लंदन : जैन धर्म के सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक ग्रंथों में एक शांतिनाथ चरित्र को यूनेस्को ने अपनी विश्व विरासत सूची में शामिल किया है। यूनेस्को की वैश्विक धरोहर समिति में बुधवार को हुई बैठक में भारतीय पक्ष से प्राप्त इस प्रस्ताव को मंजूरी देते हुए इसे विश्व विरासत सूची…
भ्रान्तियों का निराकरण तीर्थंकर जन्म से ही भगवान होते हैं प्रश्न – क्या तीर्थंकर जन्म से ही भगवान नहीं होते हैं, प्रत्युत केवलज्ञान प्राप्त करने के बाद भगवान होते हैं ? उत्तर – ऐसा नहीं है, उनके गर्भ में आने के छह माह पूर्व से रत्नवृष्टि आदि होना, ऐसी विशेषताएँ पाई जाती हैं अत: वे…
भ्रान्तियों का निराकरण भोगभूमि के मानव आदिवासी भील नहीं थे प्रश्न – क्या भगवान ऋषभदेव के समय प्रजा के लोग आदिवासी भील जैसे वेष धारण करते थे ? उत्तर – नहीं, क्योंकि उस समय भोगभूमि व्यवस्था थी, कल्पवृक्षों से फल मिलना बंद हो गया था, अत: प्रजा के लोग ‘‘क्या भोजन करें ? कैसे रहें…
ज्योतिष सम्बन्धी विशेष जानकारी पंचांग कैसे देखें लेखक- पं. गजेन्द्रजैन(ज्योतिषसम्राट),फर्रुखनगर(हरियाणा) ज्योतिष के किसी भी विषय को समझने के लिए जरुरी है कि सबसे पहले पंचांग को समझा जाये। पंचांग में तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण ये पांच होते हैं। इन पांच अंगों के मिलने से पंचांग कहलाता है। १. तिथि—चन्द्रमा की एक कला…
श्रीमज्जिनसहस्रनाम स्तोत्र मूल स्तोत्र रचयिता – परमपूज्य श्री जिनसेन आचार्य स्तोत्र परिचय *प्रभू के समवशरण में केवलज्ञान लक्ष्मी का वैभव देखकर, सौधर्म इंद्र ने अतिशय भक्तिभाव से १००८ नामोंसे वीतराग जिनेन्द्र भगवान की स्तुति की थी।*उसी भावना को जिनसेन आचार्य जी ने सहस्रनाम स्तोत्र की रचना में व्यक्त किया है.*इस स्तोत्र में कुल ३४ (…