याचनी भाषा!
याचनी भाषा – अनुभय भाशा का एक भेद, इस तरह के प्रार्थना पूर्ण वचनों को कहना। Yacani Bhasa- Requesting language (pertaining to some material)
याचनी भाषा – अनुभय भाशा का एक भेद, इस तरह के प्रार्थना पूर्ण वचनों को कहना। Yacani Bhasa- Requesting language (pertaining to some material)
रत्ननंदि – नंदीसंध बलात्कार गण में वीरनंदी न 1 के षिश्य व माणिक्यनंदी न 1 के गुरू। समय ई 639 से 668 Ratnanadi-Name of the disciple of Virnandi-1 and preceptor of Manikyanandi-1
दीक्षा योग्य मुहूर्त (महापुराण के आधार से) गार्हस्थ्यमनुपाल्यैवं गृहवासाद् विरज्यत:। यद्दीक्षाग्रहणं तद्धि पारिव्राज्यं प्रचक्ष्यते।।१५५।। पारिव्राज्यं परिव्राजो भावो निर्वाणदीक्षणम्। तत्र निर्ममता वृत्त्या जातरूपस्य धारणाम्।।१५६।। प्रशस्ततिथिनक्षत्रयोगलग्न ग्रहांशके। निग्र्रन्थाचार्यमाश्रित्य दक्षा ग्राह्या मुमुक्षुणा।।१५७।। विशुद्धकुलगोत्रस्य सद्वृत्तस्य वपुष्मत:। दीक्षायोग्यत्वमाम्नातं सुमुखस्य सुमेधस:।।१५८।। ग्रहोपरागग्रहणे परिवेषेन्द्रचापयो:। वक्रग्रहोदये मेघपटलस्थगितेऽम्बरे।।१५९।। नष्टाधिमासदिनयो: संक्रान्तौ हानिमत्तिथौ। दीक्षाविधिं मुमुक्षूणां नेच्छन्ति कृतबुद्धय:।।१६०।। इस प्रकार गृहस्थधर्म का पालन कर घर के निवास…
मुनि दीक्षा विधि -मंगलाचरण- श्री त्रैलोक्यगुरुं नत्वा, त्रैलोक्याग्रपदाप्तये। तीर्थंकरान् गणीन्द्रांश्च, जिनवाणीमपि स्तुम:।।१।। संप्रति शासनं यस्य, तं वीरस्वामिनं नुम:। इन्द्रभूतिगणीन्द्राय, नमोऽस्तु सर्वसाधवे।।२।। षोडशकारणं पर्व, षोडशतीर्थकृज्जिन:। सद्दृग्विशुद्धिसंप्राप्त्यै, तत्तं च कोटिशो नुम:।।३।। सम्यग्दीक्षाविधिं प्राप्य, भवेदात्मा जगद्गुरु:। त्रैलोक्यस्य गुरुर्भूत्वा, त्रैलोक्याग्रेऽवतिष्ठते।।४।। आर्षात्संकलनं कृत्वा, जैनीदीक्षाविधे: क्रमात्। महाव्रतस्य दीक्षाप्त्यै, दीक्षाविधिरनूद्यते।।५।।
शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखर तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर दिगम्बर जैनों का अनादिनिधन शाश्वत सिद्धक्षेत्र है। जहाँ से अनन्त तीर्थंकरों ने मोक्षप्राप्त किया है और अनन्तानन्त भव्य जीवों ने भी तपस्या करके इस पर्वतराज से निर्वाणधाम को प्राप्त किया है इसीलिए इसे सिद्धक्षेत्र के रूप में सदा से पूजने की परम्परा रही है। जैन समाज में जन्म लेने…
षट् आवश्यक (श्रावक) – Sat Aavashyaka (Shraavaka). Six essential duties of Jaina followers. श्रावक के 6 आवश्यक कर्त्तव्य- दान, पूजा, गुरु की सेवा, स्वाध्याय, संयम और तप “
आवली का प्रमाण अर्थासंदृष्टि के अनुसार आवली का चिह्न २ ( दो ) है जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण समयों की एक आवली होती है” जघन्य युक्तासंख्यात और आवली समान है अर्थात् एक आवली में जघन्य युक्तासंख्यात प्रमाण समय होते हैं ” जघन्य युक्तासंख्यात का प्रमाण – जघन्य परितासंख्यात का विरलन करके अर्थात् जघन्य परितासंख्यात प्रमाण एक-एक…