उष्णयोनि (Ushnyoni) गोम्मटसार जीवकाण्ड की गाथा में गुणयोनि के भेद बताए है – ‘‘जम्मं खलु सम्मुच्छण , गब्भुववादा दु होदि तज्जोणी । सच्चित्त सीदसउडसेदर मिस्या य पत्तेयं ।। अर्थात् जन्म तीन प्रकार का होता है – सम्मूर्छन, गर्भ, और उपपाद तथा सचित्त , शीत, संवृत और इनमे उल्टी अचित्त, उष्ण , विवृत तथा तीनों की…
उष्ण परीषह (Ushn Parishah) मोक्षमार्ग से च्युत न होने और कर्मो की निर्जरा के लिए जो मानसिक व शारीरिक पीड़ाये किसी मोक्षार्थी को आती है उनको परिषह कहते हैं और उनका समभावों से सह लेना ‘परिषहजयं कहलाता है । परिषह के २२ भेद है – तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ में २२ परिषहों के नाम बताए है –…
उमास्वामी (Umaswami) तत्त्वार्थसूत्र ग्रन्थ के प्रणेता श्री उमास्वामी जी आचार्य के जीवन परिचय का कुछ विशेष पता नही मिलता । वे कुन्द कुन्दाचार्य के पट्टशिष्य थे । उनकी परम्परा में आपके समान अन्य विद्वान शिष्य मण्डली में नहीं था । आपने १८ वर्ष की अवस्था में मुनि दीक्षा ली । २५ वर्ष बाद आचार्य पद…
उपाय विचय (Upaay Vichay) संसार, शरीर और भोगो से विरक्त होने के लिए या विरक्त होने पर उस भाव की स्थिरता के लिए जो प्रणिधान होता है उसे धर्मध्यान कहते है । उसके चार भेद है – आज्ञा विचय, अपाय, विपाक और संस्थान । इनकी विचारणा के निमित्त मन को एकाग्र करना धम्र्यध्यान है ।…
उपाध्याय (Upadhyay) जिन्हें ग्यारह अंग और चौदहपूर्वोें का या उस समय के सभी प्रमुख शास्त्रों का ज्ञान है जो मुनि संघ में साधुओं को पढ़ाते है वे उपाध्याय परमेष्ठी कहलाते है । उपाध्याय परमेष्ठी के ११ अंग और १४ पूर्व को पढ़ना – पढ़ाना ही २५ मूलगुण है । ग्यारह अंग – आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग,…
उपाधि (Upadhi) व्यक्ति के गुणों को देखते हुए उन्हें सम्मान पत्र प्रदान करना उपाधि है । भगवान ऋषभदेव को एक वर्ष के उपवास के पश्चात् जब हस्तिनापुर में राजा श्रेयांस ने प्रथम आहार दिया तो समस्त पृथ्वीमण्डल पर हस्तिनापुर के नाम की धूम मच गई सर्वत्र राजा श्रेयांस की प्रशंसा होने लगी । अयोध्या से…
उपादान (Upadaan) अंतरंग कारण को उपादान कहते हैं । अथवा जो स्वयं कार्यरूप परिणत हो जावे उसे उपादान कहते हैं । सहकारी कारण को निमित्त कहते है । जैसे सम्यक्तव की उत्पत्ति में बाह्य कारण जिनबिंब दर्शन हुआ और अन्तरंग कारण दर्शनमोह का उपशम, क्षय या क्षयोपशम हुआ एवं सम्यग्दर्शन, ज्ञान, चारित्र, ये आत्मा गुण…
गति मार्गणा मार्गणा का अर्थ खोजना या अन्वेषण करना है। जिन भावों के द्वारा जीव खोजे जाते हैं या जिन पर्यायों में जीव खोजे जाते हैं, उन्हें मार्गणा कहते हैं। ये मार्गणा गति, इन्द्रिय, काय, योग, वेद, कषाय, ज्ञान, संयम, दर्शन, लेश्या, भव्यत्व, सम्यक्त्व, संज्ञित्व और आहारक मार्गणा ये भेद रूप १४ प्रकार की होती…