उद्गम (Udgam) ( आहार का एक दोष ) पिंड अर्थात् आहार की शुद्धि को पिंडशुद्धि कहते हैं । उद्गम दोष, उत्पादन दोष, एषणा दोष, संयोजना दोष, प्रमाण दोष, इंगाल दोष, धूमदोष और कारण दोष ऐसे पिंडशुद्धि के आठ दोष हैं । इन दोषों से रहित ही पिंडशुद्धि होती है । इन दोषों के आठ भेद…
उदीरणा (Udirana) ( कर्म के दस करण (अवस्था)का भेद ) उदयकाल के बाहर स्थित, अर्थात् जिसके उदय का अभी समय नहीं आया है ऐसा जो कर्म द्रव्य इसको अपकर्षण के बल से उदयाबली काल में प्राप्त करना उदीरणा है । कर्म के उदय की भाँति उदीरणा भी कर्मफल की व्यक्तता का नाम है परन्तु यहाँ…
उदय (Uday) कर्म का अपनी स्थिति को प्राप्त होना अर्थात् फल देने का समय प्राप्त हो जान उदय है । जीव के पूर्वकृत जो शुभ या अशुभ कर्म उसकी चित्र भूमि पर अंकित पड़े रहते है वे समय – समय पर परिपक्त दशा को प्राप्त होकर जीव को फल देकर खिर जाते हैं । इसे…
उदंबर (Udambar) श्रावक के अष्टमूल गुण होते हैं । पाँच उदुम्बर फल और मद्य, मांस , मधु इन तीन मकार का त्याग अष्टमूल गुण कहलाता है । पाँच उदम्बर फल इस प्रकार हैं – बड़ पीपल, पाकर, कठुमर (ऊमर) गूलर (अंजीर)। इनमें उड़ते हुए त्रस जीव प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं । अत: इन का…
उत्सर्पिणी (Utsarpini) भरत क्षेत्र के आर्यखण्ड में अवसर्पिणी उत्सर्पिणी काल के दो विभाग होते हैं । जिसमें मनुष्यों एवं तिर्यंचों की आयु, शरीर की ऊंचाई , वैभव आदि घटते रहते हैं । वह अवसर्पिणी एवं जिसमें बढ़ते रहते हैं वह उत्सर्पिणी कहलाता है । अद्धापल्यों से निर्मित दस कोड़ा – कोड़ी सागर प्रमाण अवसर्पिणी और…
उत्सर्गसमिति (Utsargsamiti) आगम के अनुसार गमनागमन, भाषण, भोजन आदि में सम्यक ‘‘इति समीचीन प्रवृत्ति ’’ करना समिति है । ये व्रतों की रक्षा करने में बाड़ के समान है । समिति के पाँच भेद हैं – १ ईर्यासमिति २ भाषा समिति ३ एषणा समिति ४ आदान निक्षेपण समिति ५ उत्सर्ग समिति हरी घास, जीव जन्तु…
उत्पादव्यय ध्रौव्य (Utpadvyay Dhrauvy) सद् द्रव्य लक्षणं द्रव्य का लक्षण सत् है । सत् क्या है ? उत्पाद व्यय ध्रौव्य युक्तं सत् जिसमें उत्पाद , व्यय और ध्रौव्य पाया जाए वह सत् है । उत्पाद- द्रव्य में नवीन पर्याय की उत्पत्ति को उत्पाद कहते हैं जैसे जीव की देव पर्याय का उत्पाद । व्यय –…
उत्पाद पूर्व (Utpad Purv) श्रुतज्ञान के अंग प्रविष्ट को बारहवां भेद दृष्टिवादांग है । दृष्टिवादांग के पाँच अधिकार है – परिकर्म, सूत्र , प्रथमानुयोग, पूर्वगत और चूलिका इनमें से पूर्वगत अर्थाधिकार के चौदह भेद हैं – १़ उत्पादपूर्व २़ अग्रायणीयपूर्व ३़ वीर्यानुप्रवादपूर्व ४़ अस्ति नास्ति प्रवादपूर्व , ५़ ज्ञानप्रवाद पूर्व ६़ सस्त्यप्रवाद पूर्व ७़ आत्म…
उपासकाध्ययनांग (Upasakadhyaynang) उपासकाध्ययनांग – यह अंग १२,६०,००० पदों द्वारा दार्शनिक, व्रतिक, सामायिकी , प्रोषधोप वाली, सचित्तविरत, रात्रिभुत्तिकविरत, ब्रह्मचारी, आरम्भविरत, परिग्रहविरत, और उद्दिष्टविरत इन ग्यारह प्रकार के श्रावको के लक्षण उन्हीं के व्रत धारण करने की विधि और उनके आचरण का वर्णन करता है । द्वादशांग श्रुतज्ञान क्या है ? जिनन्द्र देव की दिव्यध्वनि को गणधर…