भक्तामर स्तोत्र ( अर्थसहित – सचित्र )
श्री भक्तामर-स्तोत्र मूल स्तोत्र रचयिता - परमपूज्य श्री मानतुंग आचार्य सकलनकर्ता - श्री आशुतोष दोशी, पुणे प्रस्तुतकर्ता - श्री पंकज जैन (शाह), पुणे भक्तामर- प्रणत- मौलिमणि - प्रभाणां-मुद्योतकम् - दलितपाप- तमोवितानम्।सम्यक्-प्रणम्य- जिनपाद- युगम्- युगादा-वालम्बनम्-भवजले- पतताम्-जनानाम्॥१॥ अर्थ :झुके हुए भक्त देवो के मुकुट जड़ित मणियों की प्रथा को प्रकाशित करने वाले, पाप रुपी अंधकार के समुह...